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उत्तर-कुम्हार, घड़ा नष्ट होकर चाक, कीली, डडा, हाथ आदि आहारवर्गणा के स्काध वन जावे तो ऐसा माना जा सकता है कि कुम्हार, घडा उपादान कारण और चाक, कीली, डडा, हाथ आदि कार्य उपादेय । लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है क्योकि उपादान-उपादेय तत्स्वरूप मे ही (अभिन्न सत्ता वाले पदार्थों मे ही) होता है। जिनकी सत्ता-सत्त्व भिन्न-भिन्न है। ऐसे दो पदार्थो मे उपादान-उपादेय नहीं होता है।
प्रश्न ६१-जो कुम्हार, घडा आदि निमित्तकारणो को ही चाक, कोली, उडा, हाथ आदि कार्य का सच्चा कारण मानते हैं । उन्हे जिनवाणी मे किन-किन नामो से सम्बोधन किया है ?
उत्तर-(१) जो निमित्तकारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं उन्हे समयसारकलश ५५ मे कहा है कि "उनका सुलटना दुनिवार है और यह उनका अज्ञानमोह अधकार है।" (२) जो निमित्त कारणों से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं उन्हे प्रवचनसार गाथा ५५ मे कहा है कि "वह पद-पद पर धोखा खाता है।" (३) जो निमित्तकारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते हैं उन्हे पुरुपार्थ सिद्धयुपाय गाथा ६ मे कहा है कि "तस्य देशना नास्ति अर्थात् वह भगवान की वाणी सुनने लायक नही है।" (४) जो निमित्त कारणो से ही कार्य की उत्पत्ति मानते है उन्हे आत्मावलोकन मे कहा है कि "यह उनका हरामजादीपना है।"
प्रश्न ६२–चाक, कीली, डडा, हाथ आदि आहारवर्गणा के स्कंध त्रिकाली उपादानकारण और चाक, कोली, डडा, हाथ आदि कार्य उपादेय। इसको समझने से क्या लाभ हुआ ?
उत्तर-(१) कुम्हार, घडा आदि निमित्तकारणो से चाक, कीली डडा, हाथ आदि कार्य हुआ-ऐसी खोटी मान्यता का अभाव हो जाता है। (२) चाक, कीली, डडा, हाय आदि आहारवर्गणा के स्कध को छोडकर दूसरी वर्गणाओ से दृष्टि हट जाती है। (३) अब यहाँ पर चाक, कीली, डडा, हाथ आदि कार्य के लिए मात्र त्रिकाली उपादान