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स्वत अपने परिणमन स्वभाव के कारण करता रहा है, करता है और भविष्य मे करता रहेगा। ऐसा वस्तुस्वरूप है। इसी कारण अनादि काल से मिट्टी मे पर्यायो का प्रवाह चला आ रहा है।
प्रश्न २५--अनन्तरपूर्व क्षणवर्तीपर्याय पिण्ड क्षणिक उपादान कारण और घडा उपादेय । इसको मानने से क्या लाभ हुआ?
उत्तर--(१) भूत-भविष्यत् की पर्यायो से दृष्टि हट गई। (२) मिट्टी त्रिकाली उपादान कारण था, वह भी व्यवहार कारण हो गया। (३) अव यहां पर घडा बनने के लिए मात्र अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय पिण्ड क्षणिक उपादान कारण की तरफ देखना रहा।
प्रश्न २६-कोई चतुर फिर प्रश्न करता है कि अभाव में से भाव की उत्पत्ति नहीं होती है और पर्याय में से पर्याय नहीं आती है। ऐसा जिनवाणी में कहा है। फिर यह मानना कि अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय पिण्ड क्षणिक उपादान कारण और घड़ा उपादेय है। यह आपकी बात झूठी सावित होती है ?
उत्तर-अरे भाई-अभाव मे से भाव की उत्पत्ति नही होती है और पर्याय मे से पर्याय नही आती है। यह बात जिनवाणी की बिल्कुल ठीक है । परन्तु हमने तो कार्य से पहिले कौनसी पर्याय होती है। उसकी अपेक्षा अनन्तरपूर्व क्षणवर्तीपर्याय पिण्ड को घडे का क्षणिक उपादान कारण कहा है । परन्तु अनन्तरपूर्व क्षणवर्तीपर्याय पिण्ड भी धडे का सच्चा कारण नही है।
प्रश्न २७---अनन्तरपूर्व क्षणवर्तीपर्याय पिण्ड घड़े का सच्चा उपादानकारण नहीं है । तो कैसा कारण है और कैसा कारण
से भाव यह बात मर्याय होतो
उत्तर-अनन्तरपूर्व क्षणवर्तीपर्याय पिण्ड घडे का अभावरूप कारण है वह काल सूचक है। परन्तु कार्य का जनक नही है।
प्रश्न २८-अनन्तरपूर्व क्षणवर्तीपर्याय पिण्ड क्षणिक उपादान