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प्रश्न २७५ - जब-जब कार्य होता है तब अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण का अभाव करके ही त्रिकाली उपादान कारण में से होता है, तब निमित्त होता ही है। ऐसा आप कहना चाहते हैं ?
उत्तर - हाँ, भाई बात तो ऐसी ही है । परन्तु यह ध्यान रखना चाहिए । (१) कोई मात्र उत्पाद को माने, व्यय को न माने, त्रिकाली को न माने और निमित्त को न माने तो झूठा है । (२) कोई मात्र व्यय को माने बाकी को न माने तो झूठा है । (३) कोई मात्र त्रिकाली को माने, बाकी को न माने तो झूठा है । (४) मात्र निमित्त को माने बाकी को न माने तो झूठा है (५) चारो की सत्ता है, लेकिन अपनीअपनी है। एक दूसरे मे से नही होते । (६) परन्तु जहाँ उत्पाद होगा, वहाँ व्यय का अभाव और त्रिकाली होगा और निमित्त भी होगा (७) जहाँ व्यय होगा वहाँ उत्पाद और त्रिकाली भी होगा । (८) चारो का एक ही समय है । उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य एक ही मे होता है निमित्त पर होता है; क्योकि कहा है-उपादान निजगुण जहाँ तहाँ निमित्त पर होय । भेदज्ञान परमाण विधि बिरला वृझे कोय |
प्रश्न २७६ - क्या विकारी भावों में भी छह कारक घटते हैं ? उत्तर - हाँ घटते हैं, क्योकि विकारी भाव भी निरपेक्ष हैं । प्रश्न २७७ - विकारी भावो को शास्त्रो में निरपेक्ष क्यों कहा है ?
उत्तर- ( १ ) विकारी भाव एक समय की पर्याय है यह अपने अपराध से ही है । यह अपने षट् कारक से स्वय होता है ( २ ) विकारी भावो के समय कर्म का निमित्त होता है, परन्तु विकार कर्म ने नही कराया । विकार कर्म के उदय की अपेक्षा के बिना होता है ( ३ ) अपना एक समय का दोष जानकर, स्वभाव त्रिकाल दोष रहित है उसका आश्रय लेकर अभाव करे । इसलिए शास्त्रो मे विकारी भावो को निरपेक्ष कहा है ।
प्रश्न २७८ - विकारी भावों को शास्त्रों में (१) अशुद्ध निश्चयनय