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( २३ )
समान सत्यार्थ जानकर "ऐसे भी हैं, ऐसे भी हैं" - इस प्रकार कहते हैं क्या उनका कहना गलत है ?
उत्तर - गलत है, क्योकि निश्चयकारक व्ययहारकारक दोनोकारको के व्याख्यान को समान सत्यार्थ जानकर "ऐसे भी हैं, ऐसे भी हैं" - इस प्रकार भ्रमरूप प्रवर्तन से तो दोनो कारको का ग्रहण करना ही कहा है ।
प्रश्न २६ -- यदि व्यवहारकारक असत्यार्थ है तो उसका उपदेश जिन मार्ग में किसलिये दिया ? एक निश्चय कारक का ही निरुपण
करना था।
उत्तर - व्यवहारकारक के विना निश्चयकारक का उपदेश अशक्य है, इसलिए व्यवहार कारक का उपदेश है । निश्चयकारक का ज्ञान कराने के लिये व्यवहारकारक द्वारा उपदेश देते हैं । व्यवहारकारक है, व्यवहारकारक का विषय है, जानने योग्य है, परन्तु अगीकार करने योग्य नही है |
प्रश्न २७ – कार्य के कारक कितने कहे जाते हैं ?
उत्तर - चार कहे जाते है - ( १ ) उस समय पर्याय की योग्यता, अनन्तरपूर्व क्षणवर्त्तीपर्याय, (३) त्रिकाली, (४) निमित्त, इस प्रकार कार्य के कारण चार कहे जाते है ।
प्रश्न २८ - शास्त्रो मे कहीं कार्य का कारण उस समय पर्याय की योग्यता को; कहीं अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय को; कहीं त्रिकाली को और कहीं निमित्त को क्यो कहा है।
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उत्तर --- (१) जहाँ शास्त्रो मे कार्य का कारक उस समय पर्याय की योग्यता को कहा हो, वहाँ यह ही सच्चा कारक है और अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय का कार्य सच्चा कारक नही है - ऐसा जानना । (२) जहाँ कही कार्य का कारक अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय को कहा हो, वहाँ भूत-भविष्य की पर्यायो से पृथक कराने की अपेक्षा कहा है - ऐसा जानना । (३) जहाँ कही कार्य का कारक त्रिकाली को कहा हो, वहाँ निमित्तकारक की दृष्टि छुडाने के लिए कहा है - ऐसा जानना ।
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