________________ ( 225 ) हो, परन्तु उसका अस्तित्व तो निमित्त मे है, इसमे उसका अस्तित्व नही है। परिणामी वस्तु को सत्ता मे ही उसका कार्य होता है / आत्मा के बिना सम्यक्त्वादि परिणाम नही होते / अपने समस्त परिणामो का कर्ता आत्मा है, उसके विना कर्म नहीं होता। "कर्म कृत शून्य न भवति"-प्रत्येक पदार्थ की अवस्था उस-उस पदार्थ के विना नही होती। सोना नही है और गहने बन गये, वस्तु नही है और अवस्था हो गई-ऐसा नही हो सकता। अवस्था है वह त्रैकालिक वस्तु को प्रगट करती है-प्रसिद्ध करती है कि यह अवस्था इस वस्तु की है। ___ जैसे कि-जड कर्मरूप पुद्गल होते हैं, वे कर्म परिणाम कर्ता के विना नही होते / अब उनका कर्ता ?-तो कहते है कि-उस पुद्गल कर्मरूप परिणमित होने वाले रजकण ही कर्ता है, आत्मा उनका कर्ता नही है / (अ) आत्मा कर्ता होकर जड कर्म का बन्ध करे-ऐसा वस्तुस्वरूप मे नही है। (आ) जडकर्म आत्मा को विकार कराये-ऐसा वस्तुस्वरूप में नहीं है। (इ) मन्द कषायके परिणाम सम्यक्त्व का आधार हो-ऐसा वस्तुस्वरूप मे नही है। (ई) शुभ राग से क्षायिक सम्यक्त्व हो--ऐसा वस्तुरूप मे नही है। __ तथापि अज्ञानी ऐसा मानता है यह सब तो विपरीत है-अन्याय है। भाई तेरे यह अन्याय वस्तुस्वरूप मे सहन नही होगे। वस्तुस्वरूप को विपरीत मानने से तेरे आत्मा को बहुत दुख होगा,-ऐसी करुणा सन्तो को आती है / सन्त नही चाहते कि कोई जीव दुखी हो। जगत के सारे जीव सत्य स्वरूप को समझे और दुख से छूटकर सुख प्राप्त करे-ऐसी उनकी भावना है। भाई / तेरे सम्यग्दर्शन का आधार तेरा आत्मद्रव्य है। शुभराग कही उसका आधार नही है / मन्दराग वह कर्ता और सम्यग्दर्शन उसका कार्य ऐसा त्रिकाल मे नही है / वस्तु का जो स्वरूप है वह तीन काल मे आगे पीछे नही हो सकता। कोई जीव अज्ञान से उसे विपरीत