________________ ( 224 ) है ? आत्मा स्वय उनका कर्ता है। इस प्रकार आत्मा को लक्ष मे लेने के लिए दूसरी पढाई की कहा आवश्यकता है ? दुनिया की वेगार करके दुखी होता है उसके वदले वस्तुस्वभाव को समझे तो कल्याण हो जाये / अरे जीव / ऐसे सुन्दर न्याय द्वारा सन्तो ने वस्तुस्वरूप समझाया है उने तू समझ / वस्तुस्वत्य के दो वोल हुए। अव तीसरा बोल - (3) कर्ता के बिना कर्म नहीं होता कर्ता अर्थात् परिणमित होने वाली वस्तु और कर्म अर्थात उसकी अवस्था रूप कार्य; कर्ता के बिना कर्म नहीं होता, अर्थात् वस्तु के विना पर्याय नहीं होती, सर्वथा गून्य मे मे कोई कार्य उत्पन्न हो जाये ऐसा नहीं होता। देखो, यह वस्तु विज्ञान के महान सिद्धांत है, इस २१श्वे कलश मे चार वोलो द्वारा नागे पक्षो से स्वतन्त्रता सिद्ध की है। विदेशो मे अजान की पढाई के पीछे हैरान होते है, उसकी अपेक्षा सर्वजदेव कथित इस परम सत्य वीतरागी विज्ञान को समझे तो अपूर्व कल्याण हो / (1) परिणाम सो कर्म , यह एक वात। (2) वह परिणाम किसका ?-कि परिणामी वस्तु का परिणाम है, दूसरे का नहीं। यह दूसरा बोल इसका बहुत विस्तार किया है। ___ अब इस तीसरे वोल मे कहते है कि-परिणामी के विना परिणाम 'नही होता। परिणामी वस्तु से भिन्न अन्यत्र कही परिणाम हो ऐसा नही होता। परिणामी वस्तु मे ही उसके परिणाम होते हैं, इसलिए पारणामी वस्तु वह कर्ता है, उसके विना कार्य नहीं होता। देखो, इसमे निमित्त के विना नही होता-ऐसा नहीं कहा। निमित्त निमित्त मे रहता है, वह, कही इस कार्य मे नही आ जाता, इसलिए निमित्त के विना कार्य है परन्तु परिणामी के विना कार्य नहीं होता। निमित्त भले