________________ ( 171 ) अपने स्वरूप से परिणमते हैं कोई किसी का परिणमाया परिणमता नाही। प्रश्न :-क्या ज्ञानी कुम्हार का घडा बनने मे निमित्त-नैमित्तिकपना नहीं है ? उत्तर-ज्ञातापना है, ज्ञेय-ज्ञायक सम्बन्ध भी व्यवहार से है, क्योकि ज्ञानी कुम्हार तो योग हाथ आदि क्रिया का, अस्थिरता के राग का, घडा बनने की क्रिया का, निमित्त-नैमित्तिक भाव से कर्ता नही है मात्र ज्ञाता है। प्रश्न १०-क्या ज्ञानो कुम्हार ज्ञायक और अस्थिरता का राग, हाथ आदि की क्रिया; घड़ा बना, यह सब ज्ञेय है ? उत्तर-हाँ, यह सव व्यवहार से ज्ञान का जेय है। वास्तव मे ज्ञानी ने अपनी ज्ञान पर्याय का ज्ञान किया है। प्रश्न ११-क्या आत्मा ज्ञायक और ज्ञान की पर्याय ज्ञेय / यह तो ठीक है? उत्तर-यह भी व्यवहार कथन है वस ज्ञायक तो ज्ञायक ही है। प्रश्न १२-समयसार की १००वीं गाथा के चार बोलो से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-(१) द्रव्यदृष्टि से तो कोई द्रव्य अन्य किसी द्रव्य का कर्ता नही है। (2) परन्तु पर्यायदृष्टि से किसी द्रव्य की पर्याय किसी समय किसी अन्य द्रव्य की पर्याय को निमित्त होती है। इसलिए इस अपेक्षा से एक द्रव्य के परिणाम अन्य के परिणाम के निमित्त कर्ता कहलाते हैं / (3) परमार्थत प्रत्येक द्रव्य अपने ही परिणामो का कर्ता है, अन्य के परिणामो का अन्य द्रव्य कर्ता नहीं है। प्रश्न १३-१००वी गाथा के चार बोल समझने से क्या-क्या लाभ हैं ? उत्तर-(१) पर मे कर्ता-भोक्ता वुद्धि का अभाव होकर धर्म की प्राप्ति होना / (2) पच परावर्तन का अभाव होना। (3) मिथ्या HALA