________________ ( 167 ) है। (4) मिथ्यात्वपूर्वक (अभाव करके) सम्यग्दर्शन होता है। (5) श्रुतज्ञानपूर्वक (अभाव करके) केवलज्ञान होता है। प्रश्न २-श्री समयसार गाथा 100 के चार बोल क्या-क्या हैं ? उत्तर-(१) यदि आत्मा व्याप्य-व्यापक भाव से पर द्रव्य का कर्ता बने, तो तन्मयपने का प्रसग उपस्थित होवेगा अर्थात् अभिप्राय मे आत्मा के नाश का प्रसग उपस्थित होवेगा, (पररूपपना)(२) यदि आत्मा निमित्त-नैमित्तिक भाव से पर द्रव्य का कर्ता बने, तो नित्य कतृत्व का प्रसग उपस्थित होवेगा अर्थात उसका ससार तीनो काल कायम रहेगा। (त्रिकाल ससारपना) (3) अज्ञानी का योग और उपयोग पर द्रव्य की पर्याय का निमित्त-नैमित्तिक भाव से कर्ता बनता है, (अज्ञानीपना) (4) ज्ञानी का योग और उपयोग पर द्रव्य को पर्याय का निमित्त-नैमित्तिक भाव से कर्ता नही, मात्र ज्ञाता है। (ज्ञानीपना) प्रश्न ३-कुम्हार ने घडा बनाया। क्या कुम्हार व्यापक और घड़ा व्याप्य ठीक है? उत्तर-बिल्कुल ठीक नही, क्योकि मिट्टी व्यापक और घडा व्याप्य है। प्रश्न ४-कोई चतुर कहे, कुम्हार ध्यापक और घड़ा व्याप्य, तो क्या होगा? उत्तर-कुम्हार नष्ट होकर यदि मिट्टी बन जावे तो ऐसा कहा जा सकता है। परन्तु व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध तत्स्वरूप में ही होता है अतत्स्वरूप मे नही होता है। प्रश्न ५-व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध तो एक द्रव्य का उसकी पर्याय में होता है यह बात आपको ठीक है। लेकिन घड़ा बना नैमित्तिक और कुम्हार निमित्त तो है ना? उत्तर-(१) कुम्हार निमित्त नहीं है। यदि कुम्हार घडे का निमित्त-नैमित्तिक भाव से कर्ता वने, तो कुम्हार को नित्य कर्तृत्वपने