________________ ( 148 ) उत्तर-(१) प्रकृति-प्रदेश का नैमित्तिकपना अपने उपादान से हुआ, योग गुण के विकारी परिणमन के कारण नही। योग गुण मे विकारी परिणमन के कारण प्रकृति-प्रदेश का कार्य हुआ ऐसी श्रद्धा छोडनी है / (2) स्थिति-अनुभाग का नैमित्तकपना अपने उपादान से हुआ, कपाय के कारण नही। कषाय का परिणमन होने के कारण, कार्माणवर्गणा मे स्थिति अनुभाग हुआ, ऐसी श्रद्धा छोडनी / प्रश्न १७-दर्शन मोहनीय के उपशम से औपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई, इसमे निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध बताओ? उत्तर-औपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति नैमित्तिक और दर्शन मोहनीय का उपशम निमित्त / प्रश्न १८-औपशमिक सम्यक्त्व मे दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम निमित्त बताया है। इसके अलावा दूसरा कोई निमित्त है ? उत्तर-सच्चा गुरु दूसरा निमित्त है। प्रश्न १६-दर्शनमोहनीय का उपशम और गुरु, यह दो औपशमिक सम्यक्त्व में निमित्त हुए, इन दोनो निमित्तों को क्या कहा जाता है ? उत्तर-दर्शन मोहनीय का उपशम अतरग निमित्त और गुरु बाह्य निमित्त। प्रश्न २०-गुरु जो निमित्त है उसमें भी कोई भेद है ? उत्तर-हाँ है, ज्ञानी गुरु का अभिप्राय अन्तरग निमित्त और वाणी बहिरग निमित्त। प्रश्न २१–अन्तरंग निमित्त, बहिरंग निमित्त यह निमित्तो के भेद क्यो किये ? उत्तर-(१) निमित्तो के उपभेद बताने के लिए भेद किए है। (2) सम्यग्दर्शन अपने श्रद्धा गुण के परिणमन के कारण हुआ है, निमित्तो के कारण नही, (3) जितने भी निमित्त हैं। चाहे अन्तरग हो या बहिरग हो वह सब निमित्त धर्म द्रव्य के समान ही हैं।