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उत्तर - उपादान के कार्य को "अनुरूप" और निमित्त के कार्य को "अनुकूल" शब्द बताया है ।
प्रश्न ५४ - पर्याय का कारण पर तो है नहीं, परन्तु द्रव्य भी कारण नहीं और अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय भी कारण नहीं है । मात्र उस समय पर्याय की योग्यता ही कारण है। इसकी सिद्धि कैसे हो ?
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उत्तर - देखो दरी, लड्डू, चश्मा, पुस्तक यह चारो पुद्गल हैं । इन सब मे वर्ण गुण है सब की अलग-अलग पर्याय क्यो है ? वर्ण गुण तो सब मे है । इसलिए मानना पडेगा मात्र उस समय पर्याय की योग्यता ही कारण है ।
प्रश्न ५५ -- उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण को जानने से क्या लाभ है ?
उत्तर- (१) जगत मे जो-जो कार्य होता है वह उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ही होता है । (२) पर तो उसका कारण है ही नही । ( ३ ) द्रव्य भी उसका कारण नही है । (४) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण भी सच्चा कारण नही है । (५) उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण ही सच्चा कारण और कार्य है । ऐसा जानने से अनादिकाल से पर मे कर्ता-भोक्ता की खोटी वृद्धि का अभाव होकर धर्म की प्राप्ति होती है ।
प्रश्न ५६ – क्या निमित्त उपादान से कुछ करता है ?
उत्तर - बिल्कुल नही करता है, क्योकि दोनो का स्वचतुष्ट्य पृथक्-पृथक् है ।
प्रश्न ५७ - सोनगढ़ मे निश्चय की बात तो ठीक है, परन्तु व्यवहार की बात ठीक नहीं है, क्या यह बात सत्य है
?
उत्तर - एक सेठ के एक लडका था । उसे जवानी मे वेश्या सेवन का व्यसन पड गया । जब सेठ ने लडके से लडका कहने लगा, मैं शादी नही कराऊँगा
।
शादी की बात कही तो
परन्तु सेठ ने सोचा, यह