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( १३३ ) अर्थ :-अज्ञानी विशेष प्रकार के ज्ञानभाव को प्राप्त नही करता और विशेष ज्ञानी अज्ञानपने को प्राप्त नहीं करता। गति को जिस प्रकार धर्मास्तिकाय निमित्त है, उसी प्रकार अन्य तो निमित्तमात्र है। [इष्टोपदेश श्लोक ३५](२) चैतन्य स्वभाव के कारण जानने और देखने की क्रिया का जीव ही कर्ता है। जहाँ जीव है वहां चार अरूपी अचेतन द्रव्य भी हैं तथापि वे जिस प्रकार जानने और देखने की क्रिया के कर्ता नही है उसी प्रकार जीव के सम्बन्ध मे रहे हुए कर्म, नो कर्म रूप पुद्गल भी उस क्रिया के कर्ता नही है। [पचास्तिकाय गा० १२२ की टीका से]
प्रश्न १५–'कुम्हार ने घड़ा बनाया' इस पर निमित्त की परिभाषा लगाओ? ____ उत्तर-कुम्हार स्वय स्वत घडे रूप परिणमित ना हो। परन्तु घडे की उत्पत्ति मे अनुकूल होने का जिस पर (कुम्हार पर) आरोप आ सके उस पदार्थ को (कुम्हार को) निमित्त कारण कहते हैं।
प्रश्न १६-जीव ने कर्म बांधा, इस पर निमित्त की परिभाषा लगाओ?
उत्तर-जीव स्वय स्वत कर्म बध रूप ना परिणमे। परन्तु कर्म बध की अवस्था मे अनुकूल होने का जिस पर (अज्ञानी जीव पर) आरोप आ सके उस पदार्थ को (अज्ञानी जीव को) निमित्तकारण
क उस पदार्थ हान का जिसवारणमे। परन्त ।
कहते हैं।
प्रश्न २०-(१) स्त्री ने रोटी बनाई। (२) दर्शनमोहनीय के क्षय से क्षायिक सम्यक्त्व हआ; (३) केवलज्ञान से केवलज्ञानावरणीय का अभाव हुआ; (४) मैने बिस्तरा उठाया, (५) दर्जी ने कपड़े बनाये; (६) दिव्यध्वनि सुनने से सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति हुई; (७) ज्ञेय से ज्ञान होता है; (८) मैंने मकान बनाया; (९) धर्म द्रव्य मुझे चलाता है, (१०) मुझे आकाश जगह देता है। (११) मैंने किताब उठाई; (१२) कालद्रव्य ने मुझे परिणमाया, (१३) ज्ञानावरणीय