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उसका कुछ प्रेरक नही है, (३) तत्वत प्रत्येक अपनी योग्यतानुसार ही परिणमन होता है । ( पचाध्यायी गा० ६१ से ७० तक पृष्ठ १६३ प० फूलचन्द्र जी) (४) वस्तु की एकरूप स्थिति नही रहती है, क्योकि यह पर्याय का स्वभाव है। ( समयसार कलश २११) (५) एक द्रव्य मे अतीत (भूत) अनागत (भविष्य ) और गाथा मे आए हुए " अपि " शब्द से वर्तमान पर्यायरूप जितनी अर्थ पर्याय और व्यजन पर्याय हैं, 'तत्प्रमाण' वह द्रव्य होता है । ( घवल पु० १ पृष्ठ ३८६ ) ( ६ ) तीन काल के जितने समय है, उतनी उतनी प्रत्येक द्रव्य के प्रत्येक- प्रत्येक गुण मे उतनी ही पर्याये होती हैं । उसे जरा भी इधर-उधर करने को जिनेन्द्र भगवान भी समर्थ नही हैं । ( ७ ) प्रत्येक पर्याय पूर्व पर्याय का अभाव करके आई इस अपेक्षा 'विकार्य' कहा है, नई उत्पन्न हुई इस अपेक्षा 'निर्वर्त्य' कहा है, थी तो आई इस अपेक्षा प्राप्य' कहा है । ( समयसार गा० ७६ से ७८ तक ) यह योग्यता के लिए शास्त्र के प्रमाण हैं ।
प्रश्न ६ - जब आप लोगों पर कोई उत्तर नहीं बनता है, तो आप कह देते हो कि यह 'उस समय पर्याय की योग्यता से' है तो क्या 'योग्यता' कहकर आप घोखा नहीं देते- ऐसा प्रश्नकार का प्रश्न है ?
उत्तर- (१) दो परमाणु है, एक परमाणु की वर्ण गुण की पर्याय सौ फीसदी सफेद है और दूसरे परमाणु की हजार गुणा सफेद है । तो आप बतलाइये, उसका क्या कारण है ? प्रश्नकार चक्कर मे पड गया और सोचने लगा परमाणु तो शुद्ध है उसमे दूसरा कारण नही कहा जा सकता है । तब उत्तर दिया कि उसका कारण उस समय पर्याय की योग्यता ही है (२) आपके सामने सव पुद्गल स्कध हैं, किसी की रग गुण की पर्याय काली है, हरी है पीली है, नीली है । तो प्रश्न होता है ऐसा क्यो है ? तो आपको कहना पडेगा "उस समय पर्याय की योग्यता" ही कारण है । (३) विश्व मे जीव अनन्त हैं, सबके भाव अलग-अलग क्यो हैं ? आपको कहना पडेगा - उस समय पर्याय की