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उत्तर—जब-जब उपादान मे कार्य होता है उस समय निमित्त होता ही है, ऐसी वस्तु स्थिति है । इसलिए कार्य के समय कौन निमित्त कारण है उसका ज्ञान कराने के लिए शास्त्रो मे निमित्त की 'वात' समभाई है ।
प्रश्न २२४ -- जब-जब कार्य होता है तब-तव निमित्त होता ही है - ऐसा शास्त्रो मे कहाँ लिखा है ?
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उत्तर- ( १ ) " उपादान निज गुण जहाँ तहाँ निमित्त पर होय । भेद ज्ञान परमान विधि, विरला वृझे कोय ॥" [बनारसी विलास ] (२) प्रति समय के उत्पाद ( कार्य ) के समय उचित बहिरंग साधनो की (निमित्तो की ) सनिधि ( उपस्थिति) होती ही है "जो उचित वहिग साधनो की सनिधि के सदभाव मे अनेक प्रकार की अनेक अवस्थाए करता है ।" [ प्रवचनसार गा० ६५ की टीका से ] (३) उस वस्तु मे विद्यमान परिणमनरूप जो योग्यता वह अन्तरग निमित्त ( उपादान कारण ) है और उस परिणमन का निश्चय काल (काल द्रव्य) वाह्य निमित्त है, ऐसा तत्वदर्शियों ने निश्चय किया है । [गौमट्टसार जीवकाण्ड गा० ५८० की टीका तथा श्लोक ]
प्रश्न २२५- तीनों कारणो मे से कौनसा कारण हो, तब कार्य की उत्पत्ति नियम से होती है ?
उत्तर- वास्तव मे कार्य की उत्पत्ति उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण के समय नियम से होती है । वहाँ पर वाकी के दोनो उपादान कारण और निमित्तकारण होते ही है किसी को किसी की इन्तजार नही करनी पडती है ।
प्रश्न २२६ - पहले कारण है या कार्य है ?
उत्तर - कारण और कार्य का एक ही समय है, फिर यह प्रश्न पहले कारण या कार्य झूठा है।
प्रश्न २२७ - जब सब कार्य " उस समय पर्याय की योग्यता