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( ११८ ) प्रश्न २१७-यया शरीर रीफ रहे कारण और धर्म कार्य। कारणानुविधायोनि कार्याणि को माना?
उत्तर--प्रश्न २०३ ने २०६ तक के अनुसार उत्तर दो।
प्रश्न २१८-भूतार्थ कारण और सम्यग्दर्शन कार्य, इसमे भूतार्थ फोन है ?
उत्तर-एकमात्र अनादिअनन्त अमूर्त नायक स्वभाव ही भूतार्थ
प्रश्न २१६-सम्यग्दर्शन कार्य के लिए अमृतार्थ कौन-कौन है तपा प्रत्येक पर कारणानुविधायोनि कार्याणि फो फद माना और केव नहीं माना, लगातार समझाइये?
उत्तर--(१) देव, गुरु, शास्त्र अभूतार्थ हैं, (२) दर्शन मोनीय का उपशमादि अभूतार्थ है, (३) शरीर, इन्द्रियां, नोकर्म अभूतार्थ हैं, (३) शुभ भाव अभूतार्थ, (५) एक समय की अपूर्ण-पूर्ण शुद्ध पर्याय अभूतार्थ है।
प्रश्न २२० मोक्ष कार्य के लिए भूतार्थ कौन है ? उत्तर-एकमात्र त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव ही भूतार्थ है।
प्रश्न २२१-मोक्ष कार्य के लिए अभूतार्थ कारण क्या-क्या है तथा प्रत्येक पर कारणानुविधायोनि कार्याणि को कर माना और कब नहीं माना। लगाकर समझाइये ?
उत्तर-(१) वज्रवृपभ नाराच सहनन अभूतार्थ है। (२) कमो का अभाव अभूतार्थ है। (३) शुभ भाव अभूतार्थ है। (४) चौथा काल अभूतार्थ है।
प्रश्न २२२-कार्य होने में कारण से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-वास्तव मे कार्य होने मे उपादान कारण से तात्पर्य है, निमित्त कारण से तात्पर्य नही है।
प्रश्न २२३-शास्त्रो में फिर निमित्त कारणो की बात क्यो की है जब कि का कार्य सच्चा कारण उपादानकारण ही है ?