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( १०५ ) कारण से हुआ है। वैसे ही विश्व मे जितने भी कार्य हैं वे सब उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से ही हो चुके है, हो रहे हैं और भविष्य मे होते रहेगे । ऐसा केवली के समान सच्चा ज्ञान
हो जाता भविष्य मे होणक उपादानमा
प्रश्न १५३--विश्व में जितने भी कार्य हैं वे सब उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से हो चुके हैं, हो रहे हैं
और भविष्य मे होते रहेगे। ऐसा केवली के समान सच्चा ज्ञान होते ही क्या-क्या अपूर्व कार्य देखने में आता है ?
उत्तर-(१) अनादिकाल की पर मे करूं-धरू' की खोटी मान्यता का अभाव होना । (२) दृष्टि अपने ज्ञायक स्वभाव पर आना। (३) सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रम से वृद्धि होकर मोक्ष लक्ष्मी का नाथ होना। (४) मिथ्यात्वादि ससार के पाच कारणो का अभाव होना । (५) द्रव्य क्षेत्र-काल-भव-भावरूप पचपरावर्तन का अभाव होकर पचपरमेष्टियो मे उनकी गिनती होना।
१५४--विश्व मे प्रत्येक कार्य उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ही होता है। तब कौन-कौनसी चार बातें एक साथ एक ही समय में नियम से होती हैं ?
उत्तर-(१) उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण (उत्पाद) (२) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण (व्यय) (३) त्रिकाली उपादानकारण (ध्रौव्य) (४) निमित्तकारण। ये चार बातें प्रत्येक कार्य में एक ही साथ एक ही काल मे नियम से होती हैं । (प्रवचनसार गाथा ६५)
प्रश्न १५५-उस समय पर्याय को योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ही कार्य की उत्पत्ति होती है। क्या यह निरपेक्ष है ?
उत्तर-हाँ कार्य स्वय पर की अपेक्षा नहीं रखता है इसलिए निरपेक्ष है, और अपनी अपेक्षा रखता है इसलिए सापेक्ष है । पात्र भव्य जीवो को प्रथम निरपेक्ष सिद्धि करनी चाहिए। फिर जो कार्य हुआ,