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( ६३ ) प्र० ७२. अस्तिकाय किसे कहते हैं ? उ० बहुप्रदेशी द्रव्य को अस्तिकाय कहते हैं । प्र० ७३. छः द्रव्यों के वणन से क्या समझना चाहिए ? उ० (१) जीव सदा अरूपी होने से उसके गुण सदैव अरूपी हैं इस
लिए किसी भी काल में निश्चय से या व्यवहार से हाथ पैर आदि का चलाना, स्थिर रखना, धर्म, अधर्म, आकाश काल आदि द्रव्यों से हे अात्मा तेरा किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है ऐसा निर्णय करे इसलिये छः द्रव्यों का वर्णन
किया है। (२) अनादिनिधन छहों द्रव्य भिन्न २ अपनी २ मर्यादा सहित
परिगमते हैं कोई किगी का परिणमाया परिणमता नहीं ऐसा जानकर भेद विज्ञान कर ज्ञाता स्वभाव की श्रद्धा
करके ज्ञाता दृष्ष्टा रहना छः द्रव्यों के जानने का फल है । प्र०७४. (१) शास्त्रों में कर्म चक्कर कटाता है (२) जीव पुद्गल का और पुद्गल जीव का उपकार करता है (३) धर्म चलाता है (४) अधर्म ठहराता है (५) आकाश जगह देता है (६) काल परिणमाता है ऐसे कथन का क्या अर्थ है ? उ० निमित्तादि की अपेक्षा कथन किया है इसका अर्थ ऐसा है नहीं ? ) प्र० ७५. द्रव्य का लक्षण तत्वार्थ सूत्र में क्या बताया है ? उ० सत् द्रव्यलक्षणम उत्पाद व्यय ध्रौव्ययुक्त सत् (मो० शा० अ०५सू० २६-३०) प्र ७६. क्या तात्पर्य रहा ?