________________ ( 208) 4. प्रमेयत्वगुण : सब द्रव्य-गुण प्रमेय से बनते विषय हैं ज्ञान के, रुकता न सम्यग्ज्ञान पर से जानियो यों ध्यान से; मात्मा प्ररूपी ज्ञय निज यह ज्ञान उसको जानता; है स्व-पर सत्ता विश्व में सुदृष्टि उनको जानता। 5. प्रगुरुलघुत्व गुण : यह गुण अगुरुलघु भी सदा रखता महत्ता है महा, गुण द्रव्य को पररूप यह होने न देता है प्रहा; निज गण-पर्यय सर्व ही रहते सतत निजभाव में कर्ता न हर्ता अन्य कोई यों लखो स्व-स्वभाव में / 6. प्रदेशत्वगुण : प्रदेशत्वगुण की शक्ति से आकार द्रव्यों को घरे, निज क्षेत्र में व्यापक रहे प्राकार भी स्वाधीन है; प्राकार हैं सबके अलग, हो लीन अपने ज्ञान में, जानों इन्हें सामान्य गुण रक्खो सदा श्रद्धान में। जिन, जिनवर और जिनवर वृषभ कथित जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला प्रथम भाग सम्पूर्ण // जय गुरुदेव