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( १७५ ) उ० पर के अस्तित्व को अपना न माने और अपने अस्तित्व को ओर दृष्टि दे तो प्रथम सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है । फिर श्रावक, मुनि, श्रेणी की प्राप्ति कर प्ररहंत सिद्ध की प्राप्ति होती है । प्र. २२. छ: सामान्य गुणों का रहस्य इतना है, तो जोव क्यों नहीं
विचारता ? उ० इसे चारों गतियों में घूमकर निगोद में जाना अच्छा लगता
है. इसलिये नहीं विचारता है । प्र० २३. (१) कुम्हार ने घड़ा बनाया (२) मैं देव हूँ (३) मैं तिर्यच हूँ (४) मैं लड़का हूँ (५) मुझे कर्म दुःख देते हैं (६) मेरा ज्ञान ज्ञानावर्गीकर्म ने रोक रक्खा है (७) मैं किताब उठाता हूँ (८) मुझे ज्ञान की प्राप्ति शास्त्र से होती है (६) मुझे ज्ञान की प्राप्ति दिव्यध्वनि से होती है (१०) मैं जोर शोर से बोलता हूं । (११) मैं बाल बच्चों का पालन पोपण कर सकता हूँ । (१२) अरहंत भगवान को अघातिकर्म मोक्ष में जाने से रोकते हैं । प्रादि १२ वाक्यों में छह सामान्य गुगा इस प्रकार लगायो जैसे १७वें पाठ में लगायें हैं ? उ० देखो इनमें छ: मामान्य गुग लगाने के लिये १७वाँ पाठ देखो। १७ वें पाठ के अनुसार लगाने से यदि अपने स्वभाव को दृष्टि करले, तो सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होकर, वृद्धि होकर, पूर्णता को प्राप्त कर ले।
___ अहो अहो । छ: सामान्य गुणों का रहस्य बताने वाले जिन, जिनवर और जिनवर वृपभों को अगणित नमस्कार ।