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दृष्टि करे तो गुरुलघुत्व गुण को माना ।
प्र० १०. 'मैं मनुष्य हूँ' इसमें प्रगुरुलघुत्व गुण को मानने से क्या लाभ है ?
उ०
मैं अनंत गुणों का प्रभेद पिण्ड हूं उसकी दृष्टि होते ही सम्यदर्शनादि की प्राप्ति हो जाती है और पंच परमेष्ठियों में उसकी गिनती होने लगती है संसार के कारणों का और पंच परावर्तन का प्रभाव हो जाता है।
प्र० ११. यह जीव अनन्त बार कहलाया और ११ अग ६ पूर्व का रहस्य नहीं जाना ?
द्रयलिंग धारण करके जैन साधु पाठी हुआ, वया अगुरुलघुत्व गुरण का
उ० यदि एक बार प्रगुरुलघुत्व गुण का रहस्य समझले तो तुरन्त द्रव्यलिंग का, और बाहरी परलक्षी ज्ञान का प्रभाव होकर भावलिंग और सम्यज्ञान की प्राप्ति हो जावे । परन्तु इतना होने पर भी नहीं समझा, तो समझलो वह अभव्य है |
प्र० १२. 'मैं मनुष्य हूँ' इस पर प्रमेयत्व गुण को समझायो ?
उ०
मैं श्रात्मा ज्ञायक हूँ । द्रव्यकर्म, नोकर्म श्रादि सब मेरे ज्ञान का ज्ञय है। मेरी आत्मा का पर पदार्थों के साथ ( द्रव्यकमं तैजस, शरीर, कार्मारण शरीर) ज्ञ ेय ज्ञायक संबंध है । इसके बदले मैं मनुष्य हूँ तो इसने प्रमेयत्व गुण को नहीं माना ।
प्र० १३. आत्मा और द्रव्यकर्म, तैजस शरीर, प्रौदारिक शरीर के साथ