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( १६६ ) प्र० ४३. सब पाकार कितने हैं ? उ० जितने द्रव्य हैं उतने ही प्राकार है। ५० ४४. जीव का प्राकार बड़ा हो तो लाभ हो और छोटा हो तो नुरु.
सान हो, क्या ऐसा होता है ?
बिल्कुल नहीं । प्राकार सुख दुःख का कारण नहीं है। प्र. ४५. जीव का प्रदेशत्व गुण शुद्ध हो जावे और गुणों में प्रशुद्धता
रहे, क्या ऐसा होता है ? 3. बिल्कुल नहीं । सिद्ध दशा में प्रदेशत्व गुण शुद्ध होता है। इसमें
पहले सब गुणों का परिणमन शुद्ध हो जाता है प्र० ४६. प्रदेशत्व गुण को जानने से क्या लाभ है ?
प्रदेशत्व गुण की शक्ति से, प्राकार द्रव्यों को धरे। निजक्षेत्र में व्यापक रहे, प्राकार भी स्वाधीन है। माकार हैं सबके अलग, हो लीन अपने ज्ञान में। जानों इन्हें सामान्य गुण, रक्खो सदा श्रद्धान में। अपने असंख्यात प्रदेशों में एकत्व बुद्धि करके लीन हो जाना प्रदेशत्व गुण को जानने का लाभ है।
प्र० ४७. प्रदेशत्व गुण क्या बताता है ? उ. कोई वस्तु अपने स्वक्षेत्र रूप प्राकार बिना नहीं होती, और प्राकार छोटा हो या बड़ा हो, वह हानि या लाभ का कारण नहीं है ।