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प्र० ३५. एक द्रव्य के गुण परसर में कुछ नहीं करते कहां कहा है ? उ. पंवाध्यायो अध्याय दूसरा गाथा २००८ से १०१० में भी कहा है 'कोई भी गुण किसी प्रकार दूसरे गुण में अंतर्भूत नहीं होता'. 'सभी गुण अपनी २ शक्तियों से स्वतंत्र हैं और वे भिन्न २ लक्षण वाले अनेक है, नपापि स्वद्रव्य के साथ एकमेक हैं ।
चेतावनी
स्वत: परिणमती वस्तु के, क्यों कर्ता बनते जाते हो। कुछ समझ नहीं पाती तुमको, नि:सत्व बने ही नाते हो। परे कौन निकम्मा जग में है, जो पर का करने जाते हो। सब अपने अन्दर रमते हैं, तब किस विधि करण रचाते हो। वस्तु की मालिक वस्तु है, जो मालिक है वही कर्ता है। फिर मालिक के मालिक बनकर, क्यों नीति न्याय गमाते हो । सत् सब स्वयं परिणमता है, वह नहीं किसी को सुनता है। यह माने विन कल्याण नहीं, कोई से ही कुछ कहता हो।