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( १५५ ) गण को नहीं माना।
(३) एक परमाणु कायम रहता हुपा, बदलता हुअा माना प्रयोजनभूत कार्य करता है। ऐसे ही दूसरा परमाणु करता है, इसके बदले एक एक परमाणु दूसरे परमाणु में करता है तो दोनों परमाणुओं के अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व गुण को उड़ा दिया। प्र० १७. निमित से उपादान में कार्य होता है ना। उ० बिल्कुल नहीं।
(१) निमित्त उपादान का द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव अलग २ है तव निमिच ने उपादान में किया तो एक के प्रभाव का प्रसंग उपस्थित होता है।
(२) निमित्त ने उपादान में किया तो दोनों के अगुरूलघुरख गुण को नहीं माना।
(३) दोनों के अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व गुण को उड़ा दिया। प्र. १८. श्रद्धा पूर्ण होते ही चरित्र पूर्ण हो जाना चाहिए ऐसो मान्यता
वाला क्या भूलता है ? उ० (१) अगुरूलघुत्व गुण के दूसरे पाखड़े को भूलता है।
(२) श्रद्धा पूर्ण होते ही चारित्र पूर्ण हो जाना चाहिए तो उसने श्रावक, मुनि, श्रेणो को भी उड़ा दिया। म. १९. जब जिनेन्द्र भगवान ने द्रव्य गुण पर्याय की इतनी स्वतंत्रता
बताई है तब यह अज्ञानी क्यों विश्वास नहीं करता है ?