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(१४ ) अनादिकाल से पाजतक भगवान की प्राज्ञ नुसार चला हो नहीं असो पत्ति के अनुसार भगवान की प्राज्ञा का पालन अनन्त बार किया,
परन्तु भगवान की प्राज्ञानुसार प्राज्ञा का पालन एक समय भी ना किया इसनिए जीव संसार में दुःखी है । प्र. ४७. प्रमेयत्वपना किस २ में है ? उ. प्रत्येक द्रव्य गुण और पर्याय में प्रमेयत्वपना है ।
प्र. ४८. प्रमेय (ज्ञ य) क्या २ है ? उ० (१) छह द्रव्य उनके गुण और पर्याय हैं।
(२) विकारी भाव पोर प्रपूर्ण पूर्ण शुद्ध पर्याय सब ज्ञेय हैं ।
ज्ञानी तो अपनी और पर की परणति को जानता हा
प्रवर्तता है। प्र. ४६. हमें भगवान से प्रौर शुभ भावों से लाभ है ना ? 50 उसने प्रमेयत्व गुण को नहीं माना क्योंकि भगवान और शुभ भाव ज्ञान का जय हैं। माना लाभ, तो प्रमेयत्व गुण को नहीं माना । प्र० ५०. ज्ञानी क्या जानता है ?
सब द्रव्य गुण प्रमेय से, बनते विषय हैं ज्ञान के । रुकता न सम्यग्ज्ञान परसे, जानियों यों घ्याम से ।। प्रात्मा अरूपी शेय निज, यह ज्ञान उसको जानता। है स्व-पर सत्ता विश्व में, सूदष्टि उनको जानता ।।