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( १३३ ) माने तो प्रमेयत्व गुण को माना । प्र. १५. (१) मैं रथ बनाता हूं (२) मैं शरीर की सेवा करता हूँ (३) मैं नहाता, धोता, कपड़े पहनता हूं (४) मैं बोझा उठाता हूँ (५) मैं पांच इन्द्रियों का भोग लेता हूँ (६) मैं दुकान चलाता हूँ (७) मैं घर की देख भाल करता हूं (८) मैं हूं तो उसके सब काम ठोक हो गये (6) मैं कर्मो का प्रभाव करता हूं आदि वाक्यों में (१) प्रमेयत्व गुण को कब माना और (२) इससे क्या लाभ रहा (३) प्रमेयत्व गुण को कब नहीं माना (३) इससे क्या नुकसान रहा इत्यादि स्पष्ट करो ? उ० (१) मैं रोटी खाता हूं। रोटी मेरे ज्ञान का शेय है इसके बदले मैं खाता हूं तो मैंने प्रमेयत्व गुण को नहीं माना। रोटी अनंत पुद्गल परमाणुओं का स्कंध है में उनका कर्ता भोक्ता बन गया । अनन्त द्रव्यों का कर्ता भोक्तापने का भाव निगोद का कारण है ।
प्र० निगोद का प्रभाव कैसे हो ? उ० में प्रात्मा ज्ञायक रोटी मेरे ज्ञान का ज्ञेय है। जय जायक
संबध है कर्ता भोक्ता का संबंध नहीं है तब प्रमेयत्व गुगण को मोना तब मोक्ष का अधिकारी बना।
इसी प्रकार बाकी के ८ वाक्यों को लगायो । प्र० १६. (१) में मनुष्य (२) मैं देव (३) में नारकी (४) मैं नियंच (५) मैं चार इन्द्रिय आदि में प्रमेयत्व गुण को कब नहीं माना उसका और फल क्या है ? उ० में मनुष्य हूं। मैं हूँ अनंत गुणों का अभेद पिण्ड भगवान ।