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( १३२ ) आदि काक्यों में (१) प्रमेयत्व गुगण को कब माना और कब नहीं माना ? (२) प्रमेयत्व गुण मानने वाले ने किस २ को माना प्रमेयत्व गुण न मानने वाले ने किस २ को नहीं माना आदि का उत्तर दो? (१) मैं जुओं खेलता हूं कोई नहीं जानता है ऐसी मान्यता
वाले ने प्रमेयत्व गुण को नहीं माना । अरंहत सिद्ध प्रादि
पंच परमेष्ठियों का निरादर किया। (२) मैं आत्मा हूँ मैं जुआ खेल हो नहीं सकता हूँ; जुओं खेलने
का कार्य मेरे ज्ञान का ज्ञेय है मैं तो ज्ञायक हूँ ऐसा माने तो उसे जुयां खेलने का भाव भी नहीं आवेगा तब प्रमेयत्व गुण को माना। (३) यदि अज्ञानी भी जो जुनां खेलता है क्योंकि कोई नहीं जानता। जब उसे किसी ज्ञानी ने बताया भाई परमेष्ठी यह बात जानते हैं तो वह भी जुनां न खेलेगा। लौकिक रूप से शान्ति प्रा जावेगी और यदि अज्ञानी यह जान जावे कि मेरा कार्य तो ज्ञान है तो ज्ञानी बन जावे तब प्रमेयत्व
गुण को माना। इसी प्रकार १२ वाक्यों में लगायो ।
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प्र. १४. मैं रोटी खाता हूँ ऐसा माने तो क्या नुकसान है ?
उसने प्रमेयत्व गुण को नहीं माना क्योंकि रोटो तो ज्ञान का शेय है ऐ पा न मानकर मैं खाता हूँ उसने प्रमेयत्व गुण को नहीं म.ना । मैं प्रात्मा ज्ञापक रोटी मेरे ज्ञन का शेय है ऐसा