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उ० धर्म और अधर्म द्रव्य एक एक हैं और सम्पूर्ण लोकाकाश में व्याप्त हैं। प्र०६. आकाश द्रव्य कितने हैं और कहां पर रहते हैं ? उ० प्राकाश द्रव्य एक है, लोकाकाश और अलोकाकाश में व्याप्त है । प्र० १०. काल द्रव्य कितने हैं और कहाँ पर रहते हैं ? . उ० लोक प्रमाण असंख्यात काल द्रव्य हैं और वह लोकाकाश के एक-२ प्रदेश पर रत्नों की भांति जड़े हुये हैं। प्र० ११. विश्व में छह जातियों के द्रव्य हैं इसको जानने से हमें क्या लाभ है। उ० हम केवली भगवान के लघुनंदन बन जाते हैं। प्र० १३. विश्व में छह जातियों के द्रव्य हैं, इसको जानने से हम केवली . भगवान के लघुनंदन कैसे बन जाते हैं ? उ० जैसे हमारी तिजोरी में छह रुपये हैं, हमारे ज्ञान में मो छह रुपए हैं और हमारो कापी में भी छह रुपया लिखा है। जब तीनो स्थान बराबर ही हो तो हिसाब ठीक है, उसी प्रकार के वलो भगवान को दिव्यध्वनि में छह द्रव्य पाये, शास्त्रों में भी छह द्रव्य प्राये, और हमारे ज्ञान में भी छह द्रव्य प्राये । इस प्रकार जितना केवली भगवान जानते हैं उतना ही , हमने जाना, इस अपेक्षा हम केवलो के सच्चे लघुनंदन बन गये । प्र० १४. जितना केवली भगवान जानते हैं उतना ही हम जानते हैं, तो उनके और हमारे जानने में क्या फर्क रहा ? उ० जानने में कोई अन्तर नहीं; मात्र प्रत्यक्ष परोक्ष का ही भेद है । ऐसा समयसार ची गा० १४३ की टीका भावार्थ में तथा रहस्यपूर्ण, चिट्ठी