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है, वैगा ही करता है उसी प्रकार संसार में जाति प्रपेक्षा यह द्रव्य हैं । प्रत्येक द्रव्य अपना अपना ही कार्य करता है इसका नाम पर्थक्रिया कारित्व, प्रयोजनभूत क्रिया है ।
Яс ६. वस्तुत्व गुण की बात समझ में नहीं प्राई, जरा स्पष्ट कीजिए ? जैसे (१) प्रांख देखने का कार्य करता है (२) नाक सूंघने
उ०
(५) हाथ स्पर्श
प्रत्येक द्रव्य में
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का ही (३) कान सुनने का ही (४) मुँह घखने का ही का ही कार्य करता है, उसी प्रकार जीव द्रव्य में तथा अनन्त अनन्त गुण है वह अपना अपना ही कार्य करते हैं । जैसे जीव का श्रद्धा गुण श्रद्धा का ही कार्य करेगा । ज्ञान गुण ज्ञान का ही कार्य करेगा । पुष्ट्रगल का स्पर्श गुग्ण स्पर्श का ही कार्य करेगा और गंध गुग्गा गंध का कार्य करेगा ।
Я. ७. प्रत्येक द्रव्य में अनंत अनंत गुण हैं, श्या प्रत्येक द्रव्य का प्रत्येक गुण अपना अपना प्रयोजनभूत कार्य करता ही रहता है कोई भी गुगा एक समय के लिए भी प्रयोजनभूत क्रिया रहित नहीं होता है ?
उ० हां प्रत्येक गुण अपना अपना प्रयोजनभूत कार्य करता ही रहता हैं, कोई भी गुण एक ममय के लिये भी प्रयोजनभूत क्रिया रहित नहीं होता है।
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उ०
८.
निल भगवान में पूर्गा आर्थिकपना प्रगट हो गया है तो प्रव उनका प्रयोजनभूत कार्य समाप्त हो गया है ना ?
बिल्कुल नहीं, क्योंकि उनके अनन्त गुणों में से प्रत्येक समय निर्मल स्वभाव रूप परिणामन प्रयोजनभूत कार्य होता ही रहता है ।