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________________ ( εε ) प्र० ५०. ज्ञानी अस्तित्व गुग्गा को कैसा जानत है अज्ञानी कैंस! जानता है ? उ प्र० ५१. ऐसी कौन सी खोटी मान्यता है जिससे सम्यक्त्व नहीं होता है ? अपने अस्तित्व को स्वीकार नहीं करके, पर के अस्तित्व से अपना अस्तित्व मानने के कारण सम्यग्दर्शन नहीं होता है । उ० प्र० ५२. अस्तित्व कितने प्रकार का है ? चार प्रकार का है । उ० (१) मेरा अस्तित्वपना मेरे द्रव्य गुगा पर्याय से है पर से नहीं ऐसा ज्ञानी जानता है । (२) मेरा अस्तित्वपना पर से है ऐसा अज्ञानी मानता है । प्र० ५३. किस किसके अस्तित्व से धर्म की प्राप्ति नहीं होती और किसके स्तित्व से होगी ? ) ( १ ) पर के अस्तित्व से ( २ (३) पूर्ण पूर्ण शुद्ध पर्याय के अस्तित्व से होगी । एक मात्र अपने त्रिकाल स्वभाव के की शुरूआत वृद्धि और पूर्णता होती है । उ० प्र० ५४. अस्तित्व गुण जड़ है या चेतन है ? श्रौर क्यों ? उ० उ० विकारी पर्याय के अस्तित्व से कभी भी धर्म की प्राप्ति नहीं अस्तित्व के ग्राश्रय से ही धर्म प्र० ५५. मैं अजर अमर हूँ कैसे जाना ? अस्तित्व गुण से जाना । दोनों हैं । जीव का चेतन है वाकी द्रव्य का अस्तित्व गुण जड़ है ।
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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