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प्र० ३.
उ०
प्र० १.
उ०
प्र० ५.
उ०
के कारण अनादिकाल से एक एक समय करके, अपनी मूर्खता से दुःखी हो
रहा हूं ।
प्र० ६.
उ०
प्र० ७.
उ०
तुम कब से हो ?
मैं तो जन्म मरण रहित श्रनादि अनन्त जीव हूं ।
जन्म मरण तो होता है, क्या यह बात असत्य है ?
प्र० ८.
शरीर का संयोग वियोग होता है, मेरा नहीं ।
तुम दुःखी क्यों हो ?
ज्ञान दर्शनादि प्रभेद स्वयं को भूलकर, मोहरूपी शराब पीने
मिथ्यात्व क्या है ?
मिथ्यात्व जुना, मांस आदि सप्त व्यसनों से भी बड़ा पाप है । मिथ्यात्व सप्त व्यसनों से भी बड़ा पाप है यह कहाँ प्राया है ? मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ १९१ में लिखा है "जिन धर्म में तो यह माम्नाय है कि पहले बड़ा पाप छुड़ाकर फिर छोटा पाप छुड़ाया है, इसलिए इस मिथ्यात्व को सप्त व्यसनादिक से भी बड़ा पाप जानकर पहिले छुड़ाया है । इसलिए जो पाप के फल से डरते हैं, अपने आत्मा को दुःख समुद्र में डुबाना नहीं चाहते, वे जीव इस मिथ्यात्व को अवश्य छोड़ । सर्व प्रकार के मिथ्यात्व भाव को छोड़कर सम्यग्दृष्टि होना योग्य है, क्योंकि संसार का मूल मिथ्यात्व है और मोक्ष का मूल सम्यकत्व है ।
प्र० ६.
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उ०
अपनी मूर्खता क्या है ?
मिथ्यात्व |
मिथ्यात्व कितने प्रकार का है ?
दो प्रकार का है । (१) श्रगृहीत मिथ्या दर्शन ज्ञान चारित्र जो
अनादिकाल से एक एक समय करके चला आ रहा है । (२) गृहीत मिथ्यादर्शन