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गीत, बीस तीर्थंकर जखड़ी, चतुर्गतिबेल, भजन व पदों का निर्माण किया था । कनककीर्ति भी इन्हीं के समकालीन थे। उनकी हिन्दी कृतियों में गीत अधिक हैं । उनका सम्बन्ध किसी तीर्थ या ऋषि मुनि की भक्ति से है । उनकी कृतियां मेघकुमार गीत, जिनराजस्तुति, विनती, श्रीपाल स्तुति और पद हैं ।
कवि बनारसीदास जैन हिन्दी साहित्याकाश के जगमगाते सूर्य हैं । उन्होंने नाममाला, नाटक समयसार, बनारसी विलास, अर्धकथानक, मोहविवेक युद्ध, मांझा और स्फुट पदों का निर्मारण किया था। उन्होंने १४ वर्ष की अवस्था (वि० सं० १६५७) में "एक नवरस" नाम का ग्रन्थ भी लिखा था । उसमें एक हजार दोहा चौपाई थे, किन्तु बाद में उसे प्रत्यधिक प्रश्लील मानकर उन्होंने गोमती में बहा दिया था । नाममाला एक कोष ग्रन्थ है । उसकी रचना वि० सं० १६७० में हुई थी। नाटक समयसार बनारसीदास की सर्वोत्कृष्ट कृति है । यद्यपि इसका मुख्य प्रधार प्राचार्य कुंद-कुद का 'समयपाहुड' प्रौर उस पर लिखी गयी श्रमृतचन्द्राचार्य की 'आत्मख्याति' टीका है, किन्तु उसमें मौलिकता भी पर्याप्त है । सबसे बड़ा अन्तर यह है कि नाटक समयसार में कवि की भावुकता प्रमुख है। जबकि समयसारपाहुड़ में दार्शनिक पांडित्य । मैने अपने शोध निबंध में 'नाटक समयसार' की परीक्षा भक्ति-परक दृष्टि से की है। मुझे उसमें निर्गुण और सगुण दोनों ही भक्ति का समन्वय दिखाई दिया है । ' बनारसी विलास' बनारसीदास की ५० मुक्तक रचनाएं संग्रहीत हैं। इनका संकलन श्रागरे के दीवान जगजीवन ने वि० सं० १७०१ में किया था । बनारसी विलास बहुत पहले ही पं० नाथूराम प्रेमी के सम्पादन में बम्बई से प्रकाशित हो चुका है । 'अर्ध कथानक' की रचना वि० सं० १६६८ में हुई थी। इसमें बनारसीदास के ५५ वर्ष के जीवन की श्रात्मकथा है । पं० बनारसीदास चतुर्वेदी डा० माता प्रसाद गुप्त आदि बड़े-बड़े विद्वानों ने भी इसकी प्रशंसा की है। इसमें ६७५ दोहाचौपाइयां हैं। इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का यथार्थ परिचय प्राप्त होता है। मोह विवेक युद्ध, मांझा और कतिपय पद नयी खोज में उपलब्ध हुए हैं । बनारसीदास के अध्यात्म-परक गीत में दाम्पत्य भाव की अभिव्यक्ति हुई है । उन्होंने आत्मा को पति और सुमति को पत्नी बनाया है। पत्नी, पति के वियोग में तड़फते हुए दर्शनाभिलाषा प्रकट करती है :
"मैं विरहिन पिय के श्राधीन । यों तलफों ज्यों जल बिन मीन ||
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