SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SEASEEMENT तर्क यह है कि 'सावयधम्मदोहा' देवसेन के भावसंग्रह' से बिलकुल मिलताजुलता है । देवसेन मालवा-प्रान्त की धारा-नगरी के निवासी थे। उन्होंने वहाँ ही सन् ६३३ ई० में 'सावयधम्मदोहा' का निर्माण किया था। अब यह 'दोहक' डा० हीरालाल जैन के सम्पादन में कारंजा से प्रकाशित हो चुका है। इसका दूसरा नाम 'श्रावकाचारदोहक' भी है। इसमें श्रावकधर्म होने पर भी कवि की उन्मुक्तता स्पष्ट है । दोहापाड़ मध्यकालीन संतकाव्य की एक शक्तिशाली कृति है । इसके रचयिता मुनि रामसिंह के विषय में केवल इतना विदित है कि वे राजस्थान के निवासी थे । डॉ० रामकुमार वर्मा ने उनका समय वि० स० ६६० से ११५७ के मध्य निर्धारित किया है ।२ डॉ० हीरालाल जैन इन्हें सन् १००० के लगभग मानते हैं । इस ग्रन्थ में केवल २२२ दोहे हैं। डॉ० हीरालाल जैन के सम्पादन और विद्वत्तापूर्ण भूमिका के साथ यह ग्रन्थ कारंजा से प्रकाशित हो चुका है। इस ग्रन्थ में एक अोर अात्मसाक्षात्कार के बिना बाह्म आडम्बर नितांत हेय और व्यर्थ बताये गये हैं, तो दूसरी ओर जीव के परमात्मा से प्रेम करने की बात कही गई है। वहां प्रात्मा और परमात्मा के तादात्म्य से उत्पन्न हुए समरस भाव के अनुपम चित्र पाये जाते हैं। दोहापाहुड़ एक रहस्यवादी कृति है। हिन्दी के भक्तिकालीन रहस्यवाद पर उसका स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। वैराग्यसार के रचयिता सुप्रभाचार्य हैं । कई दोहों में उनका नाम पाया है। यह काव्य सबसे पहले डॉ० वेलणकर द्वारा संपादित होकर 'एनल्स पाव भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट' से प्रकाशित हुआ था। यह संस्कृत टीका के साथ जैनसिद्धान्तभास्कर, भाग १६, किरण, दिसम्बर, १६४६ ई० में भी छप चुका है। कवि ने संसार की क्रूरता और व्यर्थता दिखाकर जीव को आत्मदर्शन को ओर उन्मुख किया है। इस काव्य में धन की सार्थकता जिनेन्द्र की भक्ति में स्वीकार की गई है । काव्य में सरसता और आकर्षण की कमी नही है। १. यह ग्रन्थ माणिकचन्द-दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला से पन्नालाल सोनी के सम्पादन में, विक्रमाब्द १९७८ में प्रकाशित हो चुका है । २. "हिन्दी-साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' : डॉ० रामकुमार वर्मा, पृ० ८३ । ३. पाहुड़दोहा, भूमिका, डॉ० हीरालाल जैन-लिखित, पृ० ३३ । Cir
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy