SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ HAMAanayama -mi s han मुनि रामसिंह के 'दोहापाहुड़' के अतिरिक्त एक और दोहापाहुड़ उपलब्ध हुमा है । उसकी हस्तलिखित प्रति आमेर-शास्त्रभण्डार, जयपुर में मौजूद है। उसमें ३३३ दोहे हैं । इसके रचयिता कोई महचन्द्र नाम के कवि हैं। इससे स्पष्ट है कि ये महीचन्द्र नाम के तीनों जैन भट्टारकों से पृथक हैं। उन्होंने एक स्थान पर 'जोईद' का स्मरण किया है। उनका काव्य 'परमात्मप्रकाश' से प्रभावित है। उसमें 'परमात्मप्रकाश' की भांति ही 'निष्कल ब्रह्म के ध्यान से अनंत सुख की प्राप्ति की बात कही गई है । उसकी अन्य प्रवृत्तियां भी 'परमात्मप्रकाश' से हू-ब-हू मिलती-जुलती हैं । यह भी रहस्यवाद का उत्तम निदर्शन है । महात्मा प्रानन्द तिलक ने 'पारणंदा' नाम की एक मुक्तक स्चना का निर्माण किया था। इसकी हस्तलिखित प्रति भामेर-शास्त्र भण्डार, जयपुर में मौजूद है । इसके रचना-काल पर मतभेद हैं, किन्तु भाषा की दृष्टि से वह चौदहवीं शती की प्रतीत होती है । इतना निश्चित है कि इसका निर्माण कबीर प्रादि निर्गुणवादी संतों के पूर्व हुआ था। इसमें ४४ पद्य हैं। यह रचना आध्यात्मिक भक्ति का सरस उदाहरण है। इसमें 'अण्ण' को चिदानंदु, रिणरंजणु, परमसिउ आदि विशेषणों से युक्त किया गया है । इसमें लिखा है कि साधुजन तीर्थों में भ्रमण न करके, कुदेवों को न पूजकर अपने हृदय में भरे अमृत-सरोवर में स्नान करें और हृदय में ही विराजमान परमात्मा की उपासन करें, उन्हें परमानन्द मिलेगा । सद्गुरु की महिमा का स्थान-स्थान पर वर्णन किया गया है। हिन्दी का भक्ति-काव्य दो भागों में विभक्त है-निर्गुण-भक्तिधारा और सगुण भक्तिधारा । निर्गुण-भक्ति के दो भेद हैं-ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेमाश्रयी शाखा। इसी भाँति सगुण-भक्तिधारा भी कृष्ण-काव्य-और राम-काव्य के रूप में बंटी हुई है। इनमें निर्गुण-भक्तिकाव्य जैन अपभ्रंश के दूहा-काव्य से प्रभावित है, ऐसा मै मानता हूँ। दोनों की अधिकांश प्रवृत्तियां समान हैं। इसलिए डॉ० हीरालाल जैन ने लिखा था-"इनमें वह विचार-स्रोत पाया जाता है. जिसका प्रवाह हमें कबीर की रचना में प्रचुरता से मिलता है। डॉ० रामसिंह 'तोमर' का भी कथन है कि 'जो हो, हिन्दी-साहित्य में इस रहस्यवाद-मिश्रित १. महचन्द-कृत पाहुड़दोहा, आमेर-शास्त्रमण्डार, जयपुर की हस्तलिखित प्रति, दोहा सं० ३२८ । २. डॉ. हीरालाल जैन, अपभ्रश-भाषा और साहित्य, काशी-नागरी-प्रचारिणी, पत्रिका भाग ५०, अंक ३-४, पृ० १०७ । HR ककककककककक55555
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy