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जैन-शिलालेख संग्रह
४६१ ऊदि-कार भग्न ।
[वर्ष दुन्दुमि (१) [दिने, वन-शारी-मन्दिरके मार्गके एक पाषाणपर ] (प्रथम अंश मिट गया है )... गतिनयनेश-रखेय शकाव्दद दुन्दुमित नाम-संवत्सर'वर-ज्येष्ठमासद सितेतर-पक्षदोळू द्वितीब-सन्नुतमर्कवार मनुव ...तां बसवले लोक-विश्रुते 'दळ समाधि-विर्षाियन्दमनिन्द्र-निवास-सौख्यमम् ॥ नन्दिदेव-पद-युग-सरसिरुहद पञ्च-पद-विनुतान्तःकरणे-महादेव-विभु-विधु वरसूरस्यमणे सुगतिय नडे पडेदळु ॥
सुररो? पुष्प-वृष्टिय-। नेरदागळे सुरिये देव-दुन्दुभि-रवमम् । बरदोलेसेयल्के बस्यो ।
सुर-लोकवेरिददळु महोत्सवदिन्दम् ॥ नमो वीतराग ॥
[लेख स्पष्ट है। इसमें भी समाधिमरण धारणकर सुगति-प्राप्तिका उल्लेख है।]
[EC, VIII, Sorab tl., No, 142. ]
४९२ मणताकार पदाभव = ( )]
[जै. शि. &, प्र. मा०]
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