________________
जैन- शिलालेख संग्रह
बरेदोम् नागवर्म्म देवारके कोड केयू ग अवुतवूर्ग काळान्तरदोळ्
मोह- सन्दोम् पश्ञ्च महा पातकनकु
१६४
यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम् | ( बाजू में ) ई-कल्ल सन्दिगर कुळि बेलेयम्मन मगम्
मुद्दन् निरिसिदोम्....
--
[ जब प्रजापति संवत्सर शक वर्ष ८३४ में, महाराजाधिराज परमेश्वर परमभट्टारक कनर - देवका राज्य प्रवर्धमान था, जिस समय कालिक देवसर - अन्वयके महासामन्त कलिविहरस बनवासि १२००० का शासन कर रहे थे, - नागरखण्ड सत्तरके 'नाळ गावुण्ड' के पदको धारण करनेवाले सतर नागार्जुनके मर जानेपर राजाने जक्कियब्वेको आवुतवूर और नागरखण्ड-सत्तर दे दिया । जक्कियन्येने भी जकलिमें मन्दिरके लिये ४ मत्तल चावलकी भूमि दी । एक बीमारीके समय उसने शक सं० ८४० में, बहुधान्य वर्ष में, पूर्ण श्रद्धा से बसदिमें आकर समाधिमरण ले लिया । ]
१४१ गिरनार - संस्कृत - भग्न | (काल लुप्त )
[ यह लेख नेमिनाथ मन्दिरके दक्षिण तरफके प्रवेशद्वारके पासके प्राङ्गणके पश्चिम दिशा की तरफके एक छोटे मन्दिरकी दीवालपर है । पाषाण टूटा हुआ है । ]
॥ स्वस्ति श्रीवृति
|| नमः श्रीनेमिनाथाय ज
|| वर्षे फाल्गुन शुदि ५ गुरौ श्री
|| तिलकमहाराज श्रीमद्दीपाल
॥ वयरसिंहभार्या फाउसुतसा ॥ सुतसा० साईआ सा० मेलामेला