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कोन्नूरका लेख
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इस.
लेखके दो भाग हो जाते हैं। श्लोक १ से लेकर ४३ तक दानकी प्रशस्ति है । यह दान ८६० ई० में राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष प्रथमने दिया था । श्लोक ४४ से लेकर लेखके अन्तिम गद्य तकका भाग जैनधर्म और दो मुनियों-मेवचन्द्र त्रैविय और उनके शिष्य वीरनन्दी की प्रशंसा करनेके बाद, हमें यह सूचित करता है कि वीरनन्दिके पास एक ताम्रशासन ( तांबे के ऊपरका लेख ) था, जिसको बादमें कोळनूर ( कोसर जहांका यह शिलालेख है ) के महाप्रभु हुलियामरस तथा औरोंकी प्रार्थनापर प्रस्तुत शिलालेख के रूपमें उत्कीर्ण किया गया । इस कथनके अनुसार शिलालेखका आदिसे लेकर ४३ श्लोक तकका भाग, जिसमें दान- प्रशस्ति है, ताम्र-शासनके लेखपरसे लिया गया है । वीरनन्दी और उनके गुरु मेन्द्र त्रैविद्य कालसे इस पाषाण लेखके कालका निर्णय एक कीलहॉर्नने स्थूल रूपसे ईसवीकी १२ वीं सदीका मध्य निश्चित किया है । यह काल शिलालेख - निर्दिष्टकाल ८६० ई० (शक सं० ७८२ ) से भिन्न
पड़ता 1
शिलालेख के मुख्य भागमें ( श्लोक १ - ४३ तक ) यह उल्लेख है कि आश्विन महीनेकी पूर्णिमाको सर्वग्राही चन्द्रग्रहणके अवसरपर, जब कि शक सं० ७८२ बीत चुका था, और जगत्तुंग के उत्तराधिकारी राजा अमोघवर्ष ( प्रथम ) राज्य कर रहे थे, उन्होंने अपने अधीनस्थ राज्यकर्मचारी बयकी महत्त्वपूर्ण सेवाके उपलक्ष्य में कोनूरमें बङ्केयद्वारा स्थापित जिनमन्दिरके लिये देवेन्द्रमुनिको तलेयूर गाँव पूरा तथा और दूसरे गाँवोंकी कुछ जमीन दानमें दी । ये देवेन्द्र पुस्तक गच्छ, देशीय गण, मूलसंघके कालयोगीशके शिष्य थे । शिलालेख के प्रारम्भिक भाग ( लोक ३ से ११ ) में अमोघवर्षकी वंशावली दी हुई है । १७-३४ तकके लोकों में केय की सेवाओंकी प्रशंसा वर्णित है। इस भागके अन्तिम अंश (४२ लोकके बाद गद्य अंश और ४३ वें श्लोक में ) लेखकका नाम वत्सराज तथा बक्जेयराजके मुख्य सलाहकारका नाम महत्तर गणपति दिया हुआ है ।
इस शिलालेखपरसे अमोघवर्षकी जो वंशावली निकलती है तथा दूसरे ताम्र-पत्रोंपर जो उत्कीर्ण है उसमें कुछ अन्तर पड़ता है । पाठकोंके जानने के लिये हम यहाँ दोनों वंशावलियाँ दे देते हैं ।