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________________ कडबका लेख १३९ [ इस शिलालेखमें बताया है कि राजा प्रभूतवर्ष ( गोविन्द तृतीय ) ने जब कि वे मयूरल डीके अपने बिजयी विश्रामस्थलपर ठहरे हुए थे, राजकी प्रार्थनापर शक सं० ७३५ में आलमङ्गल नामका गाँव जैन मुनि अर्ककीर्तिको भेंट दिया । यह भेंट शिलाप्राममें स्थित जिनेन्द्र भवनके लिये दी गई थी । कारण यह था कि कुनुन्गिक जिलेके शासक बिमलादिको उन्होंने ( मर्ककीर्ति मुनिने ) शनैश्वर ( ? ) की पीड़ासे उम्मुक्त किया था । इस लेख में पं० १-६४ तकमें राष्ट्रकूट राजाओंकी प्रशंसामात्र है । इसमें उनकी वंशावली इस प्रकार दी हुई है: wigging लेखप्रस्तुत नाम ( १ ) गोविन्द I (२) क 1 ( ३ ) इन्द्र 1 ( ४ ) वरमेव I ( ५ ) अकालवर्ष [ वैरमेधका चाचा ( पितृष्य ) ] ऐतिहासिक नाम = गोविन्द प्रथम = कर्क प्रथम इन्द्र द्वितीय = दन्तिदुर्ग या दन्तिवर्म्मन् द्वि० = कृष्ण प्रथम ( ६ ) प्रभूतवर्ष = गोविन्द द्वितीय ' (७) धारावर्ष श्री पृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर, द्वितीय नाम -- वल्लम = धुव (प्रभूत वर्षका छोटा भाई ) (८) प्रभूतवर्ष श्रीपृथ्वीवल्लभ [ महा ]- राजाधिराज परमेश्वर, द्वितीय नाम वल्लभेन्द्र = गोविन्द तृतीय ३४ वीं पंक्तिमें कहा गया है कि अकालवर्षने अपने ही नामसे 'कण्णेश्वर' नामक मन्दिर बनवाया था। पंक्ति २९-३० से ऐसा मालूम पड़ता है कि यह मन्दिर शिबके लिये अर्पण किया गया था। पं० ८१ में बताया
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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