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मथुराके लेख
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मथुरा - प्राकृत । [हुविष्क सं. २२ ]
[ सि ] द्धं सं २० (4) [२] प्रिं २ दि ७ वर्धमानस्य प्रतिमा वारणात गणातो पेतिवामि[क] ·
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अनुवाद - सिद्धि प्राप्त हो । २२ में वर्षकी ग्रीष्मके दूसरे महीनेके ७ वें दिन, वारणा गण, पेतिवामिक [ कुल ] की तरफसे वर्धमानकी प्रतिमा [ प्रतिष्ठापित की गई ] ।
ग्र
ग्रह थे । यह शाखाके थे ।
[ E], 1, n° XLIII, n° 20]
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मथुरा - प्राकृत ।
[ हुबिक वर्ष २५ ]
अ. १. सवत्सरे पचविशे हेमंतम [से ] त्रितिये दिवसे वीशे अस्मि
क्षुणे
व. १. कोड्डियतो गणतो ब्र[ह्म] दासिकतो कुलतो उचेनागरितो शाखा अबलत्रतस्य शिप सधि
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२. 'स्य शिपिनि ग्रह f.... वतन [ ना ] दिअ [रि ] त जभ[क] स्य वधु जयभट्टस्य कुंटूबिनीय रयगिनिये [वु ] सुय [ 1 ] अनुवाद - २५ वें वर्षकी शीतऋतुके तीसरे महीनेके १२ वै दिनके समय रयगिनिने जो नान्दिगिरि ( ? ) के जभककी बहू थी, एक वुसुय - की आशासे समर्पित की । रयगिनि जयभट्टकी पत्नी थी । afrकी शिष्या थी । सधि अर्थ्य बलवत ( बलनात ) के शिष्य बलत्रात कोट्टिय गण, ब्रह्मदासिक कुल (और) उच्च नागरी
[El, 1, XLIII, a 5 ]
१ यह एक प्रकारकी या तो प्रतिमा है या कोई दान है ।