________________
जैन-शिलालेख संग्रह (उक्त मितिको) पञ्चवसदिकी नींव डालकर, चट्टल देवी और चारों भाइयोंकी उपस्थितिमें, कमलभद्रदेवके पैर धोकर, भुजबल-शान्तर-देवने (जैसा कि ऊपर कहा गया है) गाँव और भूमियाँ दीं। इसीतरह उसके छोटे माई ननि-शान्तर देवने तथा इसके छोटे भाई विक्रम शान्तरदेवने (जैसा कि लेखमें बताया गया है) गाँव और भूमियाँ दानमें दी और बसदिके इन दानोंको (जिसकी सूची लेख में दी हुई है) उन्होंने सभी करोंसे मुक्त कर दिया । सीमायें, शाप और आशीर्वचन।]
[EC, VIII, Nagar ti., r* 36 ]
२१५
हुम्मच-संस्कृत तथा कन्नड़ [विना काल-निर्देशका; पर लगभग १०७७ ई० का]
[हुम्मचमें, मानस्तम्भके ऊपर, दक्षिणकी तरफ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् ।
जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन-शासनम् ।। नमो अहते ॥
खस्ति-श्री रमणी-विनोद-भवनं यस्योद्ध(द्व)-वक्षः-स्थलम् बाग्-देवी वनिता-विकास-निळयो यस्याननाम्भोरहम् । वीर-श्री-युवतेरभूत् कुळ-गृहं यद् बाहु-दण्ड-द्वयम यत्कीर्तिश्शरदिन्दु-कान्ति-विमला पारेदिशं वर्तते ॥ साक्षादुन-कुळ-प्रभुनिज-भुज-प्रोद्भासि-कौक्षेयकप्रवस्तीकृत-भूरि-गर्व-वळविद्वेषि-भूपाळकः । दीनानाथ-जना यदीय-सु-महा-दानात् परेट-प्रदस् स श्रीमान् भुवि नत्रि-शान्तर इति ख्यातो भृशं भ्राजते । विभाति यस्याप्रतिमः प्रतापः मानोगतो (!) वैरि-महीपतीनाम् ।