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जैन-शिलालेख संग्रह समनस माहरखितास आंतेवासिस वछीपुत्रस सावकास उतरदासक[1] स पासादोतोरनं [1]
अनुवाद-माहरखित (माघरक्षित) के शिष्य, वली (वासी माता) के पुत्र उतरदासक ( उत्तरदासक) श्रावकका (दान) यह मन्दिरका तोरन(ण) है।
[El, II, F° XIV, n° 1.]
मथुरा-प्राकृत। [महाक्षत्रप शोडाशके ४२ ३ (?) वर्षका] १. नम अरहतो वर्धमानस।
२. स्व[मिस महक्षत्रपस शोडासस सवत्सरे ४० (?)२ हेमंतमासे २ दिवसे ९ हरितिपुत्रस पालस भयाये मममाविकाये'
३. कोछिये अमोहिनिये सहा पुत्रेहि पालवोपेन पोटघोषेन धनघोपेन आयवती प्रतिथापिता प्राय-[भ]
४. आर्यवती अरहतपुजाये [1]
अनुवाद-अर्हत् वर्धमानको नमस्कार हो । स्वामी महाक्षत्रप शोडासके ४२ (?) वें वर्षकी शीतऋतुके दूसरे महीनेके नौवें दिन, हरिति (हरिती या हारिती माता) के पुत्र पालकी बी, तथा श्रमणोंकी श्राविका, कोछि (कौत्सी) अमोहिनि ( अमोहिनी) के द्वारा अपने पुत्रों पालघोष, पोठघोष, (प्रोष्टघोष) और घनघोषके साथ आयवती (आर्यवती) की स्थापना की गई थी।
[El, II, n. XIV, n'2]
पभोसा (अलाहाबादके पास)-संस्कृत ।
[द्वितीय या प्रथम ईसवी पूर्व (फ्यूरर)] १ पढ़ो 'समनसाविकाय'।