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________________ 50. 1. शिवराजेश इस कोश के निर्माता श्री विजय राजेन्द्र सूरि का जन्म सं. 1883, पौष शुक्ल सप्तमी, गुरुवार (सन् 1829) को भरतपुर में हुमा । श्रापकी बाल्यावस्था का नाम रत्नराज था, पर सं. 1903 में स्थानकवासी सम्प्रदाय में दीक्षित होने पर रत्न विजय हो गया। बाद में उन्होंने व्याकरण, दर्शन मादि का अध्ययन किया 1 सन् 1923 में वे मूर्ति पूजक सम्प्रदाय में दीक्षित हुए और बिजय राजेन्द्र सूरि के नाम की प्राचार्य पदवी प्राप्त की। उन्होंने अनेक मन्दिर बनवाये और उनकी प्रतिsort करायीं । वे अच्छे प्रवक्ता और शास्त्रार्थ कर्ता थे । उपाध्याय बालचन्द जी से उनका शास्त्रार्थ हुमा मौर वे विजयी हुए। प्रापको विद्वत्ता के प्रमाण स्वरूप aree ute ग्रंथ हैं जिनमें अभिधान राजेन्द्र कोश, उपदेश रत्न सार, सर्वसंग्रह प्रकरण, प्राकृत व्याकरण विवृत्ति, शब्द कौमुदी, उपदेश रत्न सार, राजेन्द्र सूर्योदय आदि प्रमुख हैं। उनके ग्रन्थों से उनकी विद्वत्ता स्पष्ट रूप से झलकती है । श्री सूरि का अन्त काल 31 दिसम्बर सन् 1906 में राजगढ़ में हुप्रा । प्रभिषान राजेन्द्र कोश के लेखक विजय राजेन्द्र सूरि ने जैन साहित्य के अध्ययन-अध्यापन के दौरान यह अनुभव किया कि एक ऐसा जैन श्रागम कोश होना चाहिए जो समूचे जैन दर्शन की प्रकारादि क्रम से संयोजित कर सके । लेखक ने प्रपने कोश ग्रन्थ की भूमिका मे लिखा है कि "इस कोश मे अकारादि क्रम से प्राकृत शब्द, बाद में उनका संस्कृत में अनुवाद, फिर व्युत्पत्ति, लिंग निर्देश तथा जैन मागमों के अनुसार उनका अर्थ प्रस्तुत किया गया है । लेखक का दावा है कि जैन ग्राम का ऐसा कोई भी विषय नही रहा जो इस महाकोश मे न माया हो । केवल इस कोश के देखने से ही सम्पूर्ण जैन भागमो का बोध हो सकता है। इसकी श्लोक संख्या साढ़े चार लाख है औौर प्रकारावि वर्णानुक्रम से साठ हजार प्राकृत शब्दों का संग्रह है। लेखक के ये शब्द स्पष्ट संकेत करते हैं कि उनका उद्देश्य इसे सही अर्थ में महाकोश बनाने का था। इस महाकोश के मुख्य पृष्ठ पर लिखा है श्री सर्वरूपित गरणधर निवर्तिताऽद्य श्रीनोपोलभ्यमानाऽशेष - सुन्नवृत्तिभाष्य-- नियुक्ति चूयदि निहित सकल पार्शनिक सिद्धान्तेतिहास- शिल्पमेवान्त—याय-वैशेषिक मीमांसादि - प्रदर्शित पदार्थ युक्तायुक्तत्वनिर्णायकः । वृहद भूमिको पोधात - प्राकृतव्याकुति-प्ररकृत शब्द रूवावल्यादिपरिशिष्टसहितः । 1. अभिमान राजेन्द्रकोश, भूमिका, पृ. 13.
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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