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इससे पता चलता है कि कोशकार द्वारा इसमें प्राकृत-मैन धाम, वृति, भाष्य, नियुक्ति, चूल, पादि में उल्लिखित सिद्धान्त, इतिहास, विरूप, वेदान्त, न्याय, fre, मीमांसा पाfद को संग्रह किया गया हैं । इसका प्रकाशन जैन प्रभाकर प्रिंटि प्रेस रतलाम से सात भागों में हुआ । इसकी भूमिका में लिखा है कि "इस कोम में मूलसूत्र प्राचीन टीका, व्याख्या तथा ग्रंथान्तरों में उसका उल्लेख fer गया है। यदि किसी भी विषय पर कथा भी उपलब्ध है तो उसका भी उल्में है। और तीर्थंकरों के बारे में भी लिखा गया है ।"" यह महाकोश यद्यपि सात भागों में समाप्त हुम्रा है परन्तु भूमिका में चार भागो की ही विषय सामग्री का उल्लेख है। इसे हम संक्षेप में इस प्रकार देख सकते हैं-
1. प्रथम भाग - वर्ण
2. द्वितीय भागमा से ऊ वर तक 3. तृतीय भाग - 'ए' से 'क्ष' वर्ण तक 4. ' चतुर्थ भाग - 'ज' से 'न' वर्ण तक 5. पंचन भाग 'प' से 'भ' वर्ण तक 6. बष्ठ भाग – 'म' से 'व' वरणं तक 7. सप्तम भाग - स से ह वर्ण तक
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पृष्ठ 894
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प्रकाशन फाल
सन् 1910
सन् 1913
सन् 1914
सन् 1917
सन् 1921
सन् 1923
सन् 1925
इन सातों भागों के प्रकाशन में लगभग पन्द्रह वर्ष लगे और कुल 10460 पृष्ठों में यह महाकोश समाप्त हुआ । इसमें प्रछेर, प्रहिंसा, श्रागम, प्रधाकम्म, प्रायरिय, आलोया, प्रोगाहगा, काल, क्रिया, केवलिपण्यति, मुख्छ, चारित, इय, जोगतिरथंयर, पवज्जा, रजोहरण, वत्थ, वसहि, विहार, सावध, उ, विनय, सद्दपावलि, पन्चक्खाण, पडिलेहरणा, परिसह, वंधरण, भाव मरण मलपुरा, मोक्ल, लोग, वस्थ, वसहि, विराय, वीर, वेयस्वच्च, श्रृंखडि सम्म, सामाइय इत्यादि जैसे मुख्य शब्दों पर विशेष विचार किया है। इसी तरह मल, प्रज्जचन्दा,
वेधर, प्रभुदेव परिद्वनेमि, धाराहरणा, इलाक्स, इतिमद्दयुक्त, उपयण काकविय, aritra, write, दयदेत, वरणसिरि' पावर, मूलवंत, मूलसिरी, मेहजोस मेम, रोहिणी, समुद्रपाल, विजयसेन, सीह, सावत्थी, हरिभद पादि जैसी महत्वकुमाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया है ।
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महाete rare है परन्तु महाकोश के प्रयोजन का चिह्न नहीं कर मम तो इसे हम मोटे रूप में मागधी महाकोश कह सकते हैं जिसमें अर्धमानवी