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ऐलक चर्या क्या होनी चाहिये और क्या हो रही है ? ] [ ६३
" जो अपनी पूर्ण शक्ति से ग्यारह प्रतिमाओ का ( न कि एक ११ वी का ) पालन करते है वे उत्कृष्ट श्रावक कहलाते हैं ।"
ग्रन्थो के इस कथन के अनुसार ऐनको को जो कि ११ वी प्रतिमा के धारी होते हैं नीचे की दसो प्रतिमाओ का पालन करना चाहिये किन्तु आजकल के प्राय ऐलक प्रोषध नाम की चौथी प्रतिमा का जिसमे अष्टमी चतुर्दशी को चार प्रकार के आहार का त्यागरूप प्रोषधोपवास करना होता है कोई पालन नही करते। वे तो अपने को मुनि की तरह अतिथि बतलाते हैं । कदाचित् किसी ग्रन्थ मे प्रसंगोपात्त कहीं उन्हें अतिथि लिख दिया हो तो उसका यह अभिप्राय कदापि नही हो सकता कि पर्व तिथियो मे उनके लिए उपवास करने का नियम टूट गया समझ लिया जावे। वहाँ अतिथि शब्द को भिक्षुक अर्थ मे लेना चाहिए क्योकि ऐलक भिक्षाभोजी होते है । अगर अतिथि शब्द का यह मतलब न लिया जावेगा तो आचार्यों की आज्ञा एक दूसरे के विरुद्ध
पडेगी ।
वल्कि निम्नलिखित ग्रन्थो मे ११ वी प्रतिमा का स्वरूप वर्णन करते हुये उसके धारी को पर्व तिथियों मे उपवास करने की खासतौर से प्रेरणा की गई है
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'उववास पुर्णणियमा चउब्विह कुणई पव्वेसु' ॥ ३०३ ॥ वसुनन्दिकृत श्रावकाचार
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" पर्वसु चोपवास नियमतश्चतुविधं कुरुते ।"
तत्त्वार्थवृत्ति भास्कर नन्दि कत - अ० ७ सू० ३६ पृष्ठ १८१