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१८
५०७
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५१७ प्रारम्भ
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५१६
५२०
५२२
५२२
५३६
५४४
५४६
५६२
५६२
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१७
२०
१५.
४
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१५
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२०
४
१४
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क्ष्
१४
२६
[ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
शुद्ध
प्रतिभाधारी
अशुद्ध
प्रतिमाधागे
बघ
तक
पचास्तिकाय
शात
यथात्यय
चले हुए
सभी
afsar
समत
जनपत्रो
कवि के
एक एक
प्रति पत्रि
समिदा
चराम्यस्थ
अकेलक
गवेपक
विशेष और
वध
तर्क
पचास्तिकाय
सान्त
यथात्यन्त
जले हुए
कभी
"
खडिता'
समत
जैनपत्रो
कवि ने
एक
प्रतिपत्ति
समिदी
वैराग्यस्य
अचेलक
गवेषक
विशेष अन्तर