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[ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
(२) दूसरी दलील आप की यह है कि - "शिलाहारवश के राजाभोज और सकलचन्द्र मुनिचन्द्र शक स० ११२५ (विक्रम स० १२६० ) के लगभग हुये है अतः यही समय माधवचन्द्र कृत क्षपणासार की समाप्ति का हो सकता है ।"
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इसका उत्तर यह है कि एक सकलचन्द्र विक्रमस ० ११२५ के करीब भी हुए है देखो शिलालेख न० ५० ( जैन शिलालेख सग्रह प्र० भाग पृ० ७४ ) इसी तरह एक मुनिचन्द्र भी विक्रम स० ११२५ मे हुये हैं | देखो शिलालेख न० २०४ ( जैन शिलालेख सग्रह द्वि० भाग पृ० २४६ ) सम्भव है क्षपणासार के वर्ता माधवचन्द्र के द्वारा स्मृत सकलचन्द्र - मुनिचन्द्र भी ये हो हो । यह सभावना इसलिये भी ज्यादह ठीक प्रतीत होती है कि - माधवचन्द्र ने क्षपणासार की प्रशस्ति में सकलचन्द्र के साथ नेमिचन्द्र सिद्धात चक्रवर्ती का भी स्मरण किया है । और नेमिचन्द्र के समय की सगति भी इन्ही सकलचन्द्र - मुनिचन्द्र के साथ बैठती है । आपके कथनानुसार विक्रम स० १२६० मे होने वाले सकलचन्द्र - मुनिचन्द्र के वक्त तो कोई नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती हुये ही नही । जैन इतिहास मे गोम्मटसार के कर्ता के अलावा उनके बाद अन्य भी कोई नेमिचन्द्र सिद्धातचक्री हुये हो ऐसा कोई उल्लेख देखने मे आया नही है । यह भी सोचने की चीज है कि - विक्रम म० १२६० के लगभग प० आशाधरजी हुये है तो क्या उनके वक्त नेमिचन्द्र- माधवचन्द्र आदि सिद्धात चक्रियो का अस्तित्व था ? एव शब्दार्णव चन्द्रिका वृत्ति की प्रशस्ति मे सोमदेव ने भोजदेव का उल्लेख करते हुये शिलाहारवशी लिखकर यह व्यक्त किया है कि वह परमारवशी प्रसिद्ध राजा भोज से भिन्न है । उस तरह माधवचन्द्र ने क्षपणासार मे भोजराजा को शिलाहार