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क्षपणासार के कर्ता माधवचन्द्र ]
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११वी शताब्दी के तीसरे चरण तक पहुँच जाता है तो उनके शिष्य माधवचन्द्र का भी विक्रम स० ११२५ मे जीवित रहना सभव हो सकता है। माधवचन्द्र ने त्रिलोकसार की टोका गोम्मटसार की रचना के बाद बनाई है। क्योकि त्रिलोक्सार गाथा २५० की टीका मे एक गाथा "तिण्णसय जोयणाण "" उद्धृत हुई है वह गोम्मटसार जीवकाड की है।
त्रिलोकसार टीका और क्षपणासार की शैली एव तन्व विवेचन का तुलनात्मक अध्ययन करने पर भी दोनो के एक फर्तृत्व का निश्चय किया जा सकता है इस ओर साहित्यिक विद्वानो को ध्यान देना चाहिए।
क्षपणासार की प्रशस्ति मे माधवचन्द्र ने अपना दीक्षागुरु सकलचन्द्र को बताया है । इस पर विचार उठता है कि उनके विद्यागुरु नेमिचन्द्र के होते हुए उन्होने सकलचन्द्र से दीक्षा क्यो ली? ऐमा लगता है कि दीक्षा के वक्त शायद नेमिचन्द्र दिवगत हो गए हो। इसी से उनको सकलचन्द्र के पास से दीक्षा लेनी पडी हो। साथ ही ऐमा भी मालूम पडता है कि त्रिलोकसार की टीका की समाप्ति के समय तक वे दीक्षित ही नहीं हुए थे। क्योकि टीका की प्रशस्ति या टीका मे यत्र-तत्र ऐसा कोई उल्लेख नहीं पाया जाता है जिससे उनका मुनि होना प्रगट होता हो। क्षपणासार मे तो शुरू मे ही वे अपने को मुनि लिखते हैं। इन सब बातो से यही निष्कर्ष निकलता है कि नेमिचन्द्र स्वामी की जब वृद्धावस्था थी तब उनके शिष्य माधवचन्द्र युवा थे और इससे माधवचन्द्र का अस्तित्व वि० स० ११२५ मे माना जा सकता है। इस समय के साथ एक बाधा अगर यह उपस्थित की जावे कि क्षपणासार की प्रशस्ति मे