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दयामय जैन धर्म और उसकी देव पूजा
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"अहिंसा परमो धर्म " ऐसा सब कहते हैं मगर इस तत्व की जितनी गहनता, जितनी महत्वता और जितनी विशालता जैन धर्म मे है उतनी अन्य जगह नही मिलेगी । लोक मे जैनियो की दया वडी मशहूर है । और तो क्या भारत के अजैन विद्वान् भी मुक्त कठ से कहते है कि अन्य धर्मो मे अहिंसा का जो भी रूप नजर आता है यह श्रेय जैन धर्म को ही है जैन धर्म की अहिंसा की सृष्टि बिल्कुल लोकहित की दृष्टि से है, उसमे स्वार्थपरता का दोष ढूढने से भी नही मिलता । जबकि अन्य धर्मों मे कही मनुष्यो तक कही पशुओ तक और अधिक गये तो वही कही दृष्टि गोचर जीवो तक अहिंसा पहुचाई है, किन्तु जैन धर्म की अहिंसा का क्षेत्र तो इतना लम्बा चौडा विराट है कि उसमे नजर मे भी न आने वाले सर्वज्ञगम्य सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवो से लेकर महाकायधारी बडे से बडे सम्पूर्ण जीव चले आते है । देवता, मंत्र, धर्म औषधादि किसी निमित्त से भी हिंसा क्यो न हो, जैन धर्म की दृष्टि मे उसे धर्म कोटि मे कोई स्थान नही दिया जा सकता, जैसा कि निम्न लिखित श्लोक से प्रगट है
देवतातिथि मनीषध पिनादि निमित्ततोऽपि सपन्ना । हिंसा धत्त नरके कि पुनरिह नान्यथा विहिता ॥ २६ ॥ [" अमितगति"]