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साधुओ की आहारचर्या का समय ]
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( २० ) इन्द्र वामदेव रचित पचसग्रह दीपक ( अनेकात वर्ष २३ पृ० १४८)
प्रात श्रीजिनपूजनेन विधिना मध्याह्न कालेऽप्यय । दानेनाद्भुतकीर्तिनो मुनिजनाशीर्वाद" ॥२२३॥
(२१) प्राचीन काल मे सभी लोग प्राय मध्याह्न मे भोजन करते थे यही समय मुनियों के आहार का है क्योकि श्रावक द्वारापेक्षण करके ही भोजन करते थे । श्रावको के मध्याह्न भोजन के प्रमाण निम्नाकित है
( अ ) आदिपुराण पर्व ४१
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ततो मध्यदिनेऽत्र्यर्णे कृत मज्जन सं विधि | तनुस्थिति स निर्वर्त्य निर विक्षत् प्रसाधन ॥१२८॥ अर्थ - तत्पश्चात् दोपहर का समय निकट आनेपर स्नान आदि करके भोजन करते उससे निवृत्त होकर अलकार धारण करते थे ।
( ब ) जम्बू सामि चरिउ ( वीर कविकृत ) ज्ञानपीठ, काशी से प्रकाशित पृ० १६० से १६२ मे वताया है कि - जम्बू विवाह के वक्त मध्याह्न में भोजन किया ।
( स ) सागार धर्मामृत अ० ६ श्लोक २१ तथा इससे पूर्व एव पश्चात् ।
(२२) सकलकीर्तिकृत - श्रीपाल चरित परिच्छेद १मध्याह्न स्वगृहे चैत्यालयेषु च जिनार्चन । कृत्वा दानाय वै गेह द्वार पश्यति दानिन ॥३२॥ (इसमे आवक को भी देववन्दना (मामायिक) करके ही आहारदान और भोजन बताया है )