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[ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
प्रमाण सामने न आजाये तब तक यही कहा जायगा कि वर्तमान मे जो दिन १० बजे करीब मुनि लोग गोचरी पर उतरते है वह शास्त्रीय मार्ग नहीं है, स्वेच्छाचार है । इसी तरह जो कभी परिस्थितिवश कोई साधु ( पूर्वाह्न के बजाय ) चार बजे करीब, अपराह्न मे गोचरी पर उतरते है वह भी शास्त्र सम्मत नही है ।
सामान्यत किसीभी गृहस्थके यहाँ दूसरीवेला का भोजन ४ बजे तक तैयार भी नही होता है, किसी के निमित्त स्पेशल बनाने पर ही ऐसा सम्भव हो सकता है, ऐसी हालत मे ४ बजे मुनिका गोचरी पर उतरना शास्त्र विरुद्ध तो है ही, किन्तु स्पष्टतः उद्दिष्ट दोष को लिये हुए भी है ।
इसतरह केवल किन्ही के सुभीते और अपने आराम के लिए शास्त्र विरुद्ध प्रवृत्ति करना कम से कम महाव्रतियों के लिये योग्य नही है ।
( १७ ) सकलकीर्ति आ० कृत- सुकुमार चरित्र सर्ग ७मध्याह्नभ्यर्च्य तीर्थेश मूर्ती सौंधे जिनालये । पात्रदानाय पश्यंति गृह द्वार मुहुर्बुधा. ॥३०॥ (१८) आ० सकलकीर्ति कृत- सुदर्शन चरित्र सर्ग १ -- मध्याह्न जिन मूत्तश्च प्रपूज्य जिन भाक्तिकाः । पश्यति स्वगृह द्वारं पावदानाय दानिनः ॥३६॥ ( १ ) सोमदेवकृत यशस्तिलक चम्पू (कल्प ३६ अ०६) विधिस्तव पदाम्बुज पूजनेन, मध्याह्न सान्निधिरमं मुनि मातनेन ॥५६२॥
प्रात
( मध्याह्न काल मुनियो के आतिथ्य सत्कार मे बीते )