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साधुओ की आहारचर्या का समय ]
[ ५६३ मध्याह्न मे आवश्यक नही बताई । सागार धर्मामृत अ० ५ श्लोक २६ मे भी यही कथन है।
और देखिये, अमितगति श्रावकाचार के ८वे अध्याय मे लिखा है कि
घटिकानां मतं षटकं संध्यानां त्रितये जिनः । कार्यस्यापेक्षया काल. पुनरन्यो निगद्यते ॥५१॥
अर्थ -जिन देव ने आवश्यको का काल तीनो सन्ध्याओं मे छह घडी का माना है। किन्तु कार्य की अपेक्षा से अन्य काल भी होता है।
अमित गति के इस कथन से बहुत छूट मिलती है।
आचार्य समतभद्र ने भी रत्नकरण्डश्रावकाचार मे सामायिक का काल किन्ही निश्चित घडियो मे नही बताकर "मूर्धरुहमुष्टिबासोबध" कहकर चोटी या वस्त्र मे गाठ रहेगी तब तक का सामायिक का काल बताया है। और इससे यह आशय प्रगट किया है कि वह अपने सुभीते के अनुसार जितना
ॐ इन्द्रनन्दि कृत नीतिसार समुच्चय मे मध्याह्न सामायिक [वन्दना] का काल मात्र दो घडी बताया है देखो -घटी चतुष्टय रात्र कुर्यात्पूर्वाह्न वदना मध्याह्न वदना कालो नाडीद्वयमुदाहृत ॥१०॥ अपराह्न तु नाडीना चतुष्टय समर्गहत नक्षत्रदर्शनान्मु चेत्सामायिक परिग्रह ।।१०७।। यही वात प्रायाश्चितसग्रह मे छेदशास्त्र गाथा ४७ की टोका में इस प्रकार दी है-पूर्वाह्न देववदनात्रीणि घटिकायावान् युक्त । अपराह्न घटिका चत्वारियावान् वदना । मध्याह्न घटिकाद्वय वदना । [चर्चाममाधान चर्या ने ११४ मे भी प० भूधरदासजी ने यही लिखा है।]