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[ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
मध्याह्न समय की सामायिक करके आहार के लिये मन्द गतिसे गमन करना चाहिए, उस वक्त वाम हाथ मे पीछी कमडलु और दक्षिण हाथ कन्धे पर रहना चाहिये। इस तरह से ईर्यापथशुद्धिपूर्वक श्रावक के घर पर जावे।
आजकल जिस मुद्रा मे मुनिलोग गोचरी पर फिरते है वह मुद्रा यहाँ लिखी है। शायद इसीके आधार पर यह मुद्रा चली हो । मूलाचार, अनगार धर्मामृत, आचारसार, भगवती आराधना मे ऐसी मुद्रा का उल्लेख देखने मे ही नहीं आया।
लाटी सहिता मे अतिथि सविभाग व्रत के व्याख्यान मे ऐसा कहा है
ईषन्यूने च मध्याह्न कुर्याद् द्वारावलोकनम् । दातुकाम सुपात्राय दानोयाय महात्मने ॥२२१॥
[अ० ६] अर्थ-सुपात्र को दान देने की इच्छा रखने वाला श्रावक किञ्चित् न्यून मध्याह्न मे द्वाराप्रेक्षण करे। यहाँ किञ्चित् न्यून मध्याह्न का अर्थ है १२ बजे से कुछ पहिले का समय ११॥ बजे करीब।
___ इन्द्रनन्दि कृत नीतिसार के श्लोक ४१ मे भी मध्याह्न लिखा है।
प भूधर मिश्र कृत चर्चा समाधान मे चर्चा ५३ वी मे मुनि की आहारचर्या सम्बन्धी चर्चा का समाधान इस प्रकार किया है
"प्रथम सूर्योदयविष साधु प्रात काल की सामायिक